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________________ १०० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ तृतीय शीतल अरध सुणीस । वर्ष लाख वेतालिस राजा, श्रेयांस जिनवर सौख्य- समाजा, विमलथी अनंत लग ताजा ॥ २०५ ॥ वर्षलाख तीस पनरे पण जानो, सहस पचविस पोणा चोवीश मानो, इकवीस क्रमते ठानो । वर्ष सहस पनरे पंच वखाणो, मुनिसुव्रत नमीराजनो टाणो, शेष कुमर जिनभाणो || शांति कुंथु अर राज प्रमाणे, चक्रीपद भोगी चो गुणठाणे, षट्खंड राज्य सुजाणे । राज्यकाल ए जिनवर जानो, जैनागमथी दिलमें आनो, सूरिराजेन्द्र वखानो ॥ २०६ ॥ ५८ जिनेश्वरोना अपत्योनी संख्या- शत- पुत्र दो पुत्रिका, ऋषभदेवने होय । अजित विमल मल्लि नमी, नेमि पार्श्व नवि कोय ॥२०७॥ संभवजिनथी जानिये, तीन तीन ने तीन । तेरह सप्तदशाऽष्टदश, उगणिस चौदह लीन ॥ २०८ ॥ निन्यानवें चौदह सही, वासुपूज्य लग मान । अनंत अठ्यासि धर्मजिन, उगणिस लीजे तान ॥ २०९ ॥ शांतिनाथ डेक्रोड, एहिज कुन्थु वखान । सवाक्रोड अरनाथने, उगणिस वीसम जान ॥ २१० ॥ श्रीवीरने एक पुत्रिका, अपत्य संख्या एह । सूरीश्वरराजेन्द्रनी, जाणो आगम लेह ॥ २११ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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