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________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. तीनसो तीस तीस वर्ष, पार्श्व वीर कुमार । कुमरपदे इतना रह्या, जिनवर जग सरदार ॥ २०२॥ द्वार पेंतीसे सोहतुं, पूर्ण द्वितीयोल्लास । जन्ममाससुं कुमार लग, जिनपति स्थान प्रकाश ॥२०३॥ श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरुदेव-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां पश्चत्रिंशत्स्थानवर्णनो नाम द्वितीयोल्लासः। ५६ जिनेश्वरोनो विवाह मल्लि नेमि दो अपरिणीत, परण्या जिनवर शेष । भोग्यकर्मोदयथी भला, भोगव्या भोग विशेष ॥२०४॥ ५७ जिनेश्वरोनो राज्यकाल अने चक्रीकाल वेशठलाख पूरव ऋषभेश, त्रेपन चुम्माली सढ-छत्तीस, गुणतिस साढा-इगवीश । चउदश साढी-छ वलि आधो, पूर्व ऊपर पूर्वांगज साधो, इग चउ अड बारे लाधो ॥ सोले वीश चउवीश अठवीस, अजित लेइ सुविध्यंत कहीस,
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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