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________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. एक कोटि सागर ऊपरे, इकलख पूरव शेष । वर्ष वयाली सहस गत, शीतल जन्म विशेष ॥१०॥ शतसागर इक क्रोड अरु, लाख गुणपच्चास । सहस चोरासी ऊपरे, कहो जन्म श्रेयांस ॥१०९॥ छियाली अयर क्रोड इक, लख सेंतीस सुजान । सहस चोरासी जब रहे, वासुपूज्य जनु मान ॥११०॥ सागर सोले क्रोड इक, ऊपर लाख पचीस । सहस चोरासी शेषमें, जन्में विमल जगीस ॥१११॥ सात सागर ऊपर वरस, लाख पंचा' जान । चोरासी सहस रहे छते, अनंत जन्म प्रमान ॥११२॥ तीन सागर ऊपर वरस, लाख पंचोतर होय । सहस चोरासी शेष जब, धर्मजिन जन्मज लोय॥११३॥ पौन पल्योपम ऊपरे, छासठ लख वलि वर्ष । सहस चोरासि रहे जव, शांतिजिन जन्म प्रकर्ष ॥११४॥ पाव पल्योपम ऊपरे, छासठ लाख प्रमाण । सहस उनासी शेषमें, कुंथुनाथ जनु जाण ॥११५॥ कोटिसहस वर्ष ऊपरि, छासठ लाख प्रमाण । सहस अडसठ रहते जब, अरजिन जन्म वखाण ॥११६॥ छासह लाख ऊपर अरु, सहस उगुणचालीस । चोथो आरो शेष जब, मल्लि जन्म जगदीस ॥११७॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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