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________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ८३ चउदसि वसु जाणो, माघसुदि त्रीजे विमल वखाणो, तेरस वैशाख वदि ठाणो । धर्म माघसुदि त्रीजे जाया, शांति जेठवदि त्रीजे आया, चौदसि वैशाखवदि पाया ॥ ८६ ॥ मृगसिरसुदि दशमी अरनाथ, तिम इग्यारस मल्लि विख्यात, जेठवदि आठम थात । श्रावणवदि आठम नमि जाया, तिम सुदि पंचमि नेमि कहाया, बावीसम जिनराया । पार्श्व पोसवदि दशमी पूजे, चैत्रसुदि तेरस वीर विभूजे, नमतां पातिक धूजे ॥ ८७ ॥ २२-२४ जन्मसमय, जन्मनक्षत्र अने जन्मराशि जन्मसमय सहु जिनतणो ए, अर्धरात्रि सुखकार तो । जन्मनक्षत्र जे चवननो ए, तेहिज इहां विचार तो ॥ राशि पण तेहिज लहो ए, जे कही चवन मझार तो । सूरिराजेन्द्रजी भाषिया ए, लहिये दिल माहें धार तो ॥८८॥ २५ जिनेश्वरोना मानवादि गण ऋषभ शीतल विमल शांति, वीर गण- मानव होय । अजित संभव अभिनंदन, चन्द्र इग्यारम जोय ॥ ८९ ॥ अनंत धर्म अर मल्लिजिन, वीसम नमि सुजाण । देवगण एहनो को, जो इस ग्रन्थ प्रमाण 1180 11 सुमति पद्म सुपास सुविधि, वासुपूज्य अरु कुंथु । नेमि पार्श्व राक्षसगणी, जोईसर ए पन्धु ॥ ९१ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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