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________________ .. २६ उप्पन्न दिवनाणा, मिगावई जयउ सुहभावा ॥ ५ ॥ अर्थ:- निजदोष (अपराध) नी निंदा गर्दा करीने गुरुणीनां चरणनी सेवा करतां जेणीने शुभ भावधी केवळज्ञान उपन्यु ते मृगावती साध्वी जयवंती वर्तो ! ॥ ५ ॥ भयवं ईलाइपुत्तो, गुरुए वंसंमि जो समारुढो; दहूण मुणिवरिंद, सुहभावओ केवली जाओ ॥ ६॥ अर्थ:-मोटा वांस उपर नाचवा माटे चढ्या छतां कोई महामुनिराजने देखी शुभ भावयी पूज्य इकाचिपुत्रने केवलज्ञान प्रगट थयुं. ए सद्भावनेाज प्रभाव समजत्रो ॥ ६ ॥ कविलो अ बंभणमुणी, असोगवणिआई मज्झयारंमि; लाहालोहत्ति पयं, पढंतो (झायंतो ) जायजा इसरो ॥७॥ अर्थ:- कपिल नामनो ब्राह्मण मुनि अशोक वाटिकामां "जहा काहो नहा लोहो: लाहा लोहो पवई " ए पदनी विचारणा करतो शुभ भावयी जातिस्मरण ज्ञान पायो ॥ ७ ॥ खवग निमंतणपुत्रं, वासिअभत्तेण सुद्धभावेण; भुंजतो वरनाणं, संपत्तो कूरगडू वि (कूरगड्डूओ ) ॥ ८॥ अर्थ:-वासित भाववडे तपस्वी साधुओने निमंत्रण करवा पूर्वक भोजन करता शुद्ध भावथी कूरगडमुनि केवळज्ञान पाया. ८ २६
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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