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________________ भई कलावई ए, भीसणरत्नंमि रायचत्ताए; 18| जं सा सीलगुणेणं, छिन्नंगा पुणन्नवा जाया ॥९॥ 8. अर्थः-भयंकर अटवीमा राजाए तजी दीघेली कलावती सती, कल्याण याश्रो ! के जेना शीलगुणना प्रभावी | छेदायेगां अंगो पग फरी नवा थइ गया. ॥ ९ ॥ सीलवईए सीलं, सक्कइ सक्को वि वन्निउं नेव; रायनिउत्ता सचिवा, चउरो वि पवंचिआ जीए ॥१०॥ अर्थः-शीलवती सतीना शीलने शक्र-इन्द्र पण वर्णववाने समर्थ थइ शके नहि. के जेणीए राजाए मोकळेला चारे प्रधानोने छेतरी स्वशीलनुं रक्षण कर्यु छे. ॥ १० ॥ सिरिवद्धमाणपहुणा, सुधम्मलाभुत्ति जीए पठविओ; सा जयउ जए सुलसा,सारयससिविमलसीलगुणा॥११॥ अर्थ:-श्री वर्धमान प्रभुए जेणीने उत्तम धर्मलाभ पाटव्यो इतो ते शरदरुतुना चंद्रमा समान निर्मळ शील गुण₹ वाली सुलसा सती सर्वत्र जयवंती वर्तो. ॥ ११ ॥ | हरिहरबंभपुरंदर,-मयभंजण पंचबाणबलदप्पं;
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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