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________________ गिरिविवरगओ जीए, रहनेमि ठाविओ मग्गे ॥५॥ भर्थ-श्री ब्रसेन राजानी पुत्री राजीमतीने शीलवतीमा श्रेष्ठ गणवा योग्य छ के जेणे गुफामा प्रमथी आधी २०१६ चडेला भने मोहित थयेडा रहने मिने संयम मार्गमा पाछा स्थापित कर्थ छे-स्थिर कर्या छे. ॥ ५ ॥ . . पजलिओ विहु जलणो, सोलप्पभावेण पाणीअं होई; सा जयउ जए सीआ, जीसे पयडा जस पडाया ॥६॥ KUMORRECRUIRECRUCHARC अर्थ:-शीलना प्रभावथी. प्रज्वलित करेलो एवो पण अग्नि खरेखर जळरुप थइ गयो एवी जश-पताका जेनी करकी रहीछे ए सीतादेवी जयवंती वा ॥६॥ चालणीजलेण चंपाए, जीए उग्घाडि दुवारतिगं; कस्स न हरेइ चित्तं, तीए चरिअं सुभद्दाए ॥७॥ 12 अर्थः-चालणीना जळवडे जेणे चंपानगरी त्रण द्वार उघाड्यां इतां ते सुभद्रा सतीन (शील) चरित्र कोना चित्तने हरण नथी करतुं? नंदउ नमयासुंदरी, सा सुचिरं जीए पालिअंसीलं; * गहिलत्तणं पि काउं, सहिआ य विडंबणा विविहा॥८॥ । अर्थ:-से नर्मदा सुंदरी सती सदाय जयवंती वर्तो ! के जेणीए ग्रहिलपणुं (गांडापj) आदरीने पण शीलव्रतनुं - HAR पाखन कर्यु अमे (तेनी लातर) विविध प्रकारनी विडंबना सहन करी. ॥८॥
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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