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________________ (५८) और दुकान, ( ) बगीचे, ( ) जाजरु, ( ) मोरी. ( ) १० विलेपनमें ( ) जातका सेर. ( ) ११ बंभमें परदार और परपुरुषसें अब्रह्मचर्यका त्याग. इतनी पेर ( ) स्व- स्त्री वा पुरुषसे संबंध करना. ब्राह्य विनोदकी जयणा. १२ दिशिमें शरीरसें ( ) कोस नाना आना. चीही तार तथा माल भेजना मंगाना ( ) हजार कोसतक. छापेकी जयणा. १३ न्हाणमें ( ) मोटे, ( ) छोटे स्नान. १४ भत्तेसुमें खानेको सेर ( ) पीनेका पानी सेर ( ) दुध, सरवत मादि ( ) सेर. १५ पृथ्वीकायमें मट्टीनमक सेर ( .). .. .. १६ अप्पकायमें पानी मन ( ) ( न्हाने पीनेमें ). १७ तेऊकायमें ( ) जगहके चून्हे, अंगीठी, भट्टी, ( ) चिराग. ( ) . . मंदिर, सड़क वा दूसरी जगहके चिरागकी जयणा. १८ वायुकायमें, पंखे ( ) दूसरेके घरकी जयणा. १९ वनस्पतीकायमें ( ) जातकी सेर ( ) खानेको. २० त्रसकायर्मे चलते जीवको मारनेकी बुद्धि करके मारे नहीं. मन करके उ. पयोग सहित निरपराधीको मारे नहीं. २१ असीमें ( ) शस्त्र वा ( )औजार. २२ मसीमें ( ) लिखने पढनेका चीजें. ( ) कलम, दोवात आदि. २३ कृषीमें खेतीविघा ( ) वाकी त्याग, बगीचेकी जयणा. ___ अगर कोईको जादे कमती रखना होय तो इच्छा मुजब रखिये, यदि नाम खोलके विस्तारसे रखिये तो ज्यादे लाभ है. परंतु जितना रखिये उसमें दोष नहीं लगावे, भूल चूकसें अतिचार लमजाय तो कमसे कम १० नवकारका दंड लीजिये, और ३० द्रव्य रखे थे और ३१ लगे तो दूसरे दिन २६ रखिये. श्रावक का आठवां व्रत अनर्थ दंड त्याग. अपने उपयोग में जो धनस्पति वगैरह आवे उसे लेना वो अर्थ दंड है बिना प्रयोजन का जादह लेवे वो अनर्थ दंड है छवेश्याओं का शंत विचार
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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