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________________ (३७) श्रावक का २० वां गुण परहितार्थ कारी । पर हितकारी होता है वो धर्म अच्छी तरह समझ निरीह चित्त वाला हो कर लोगों में धन्यवाद पाता है और महा सत्यवान् होने से दूसरों को भी धर्म में लगा सकता है। परोपकारैक रतिनिरीहता, विनीतता सत्यम तुच्छ चित्तता। ... विद्या विनोदोऽनुदिनं न दीनता, गुणा इमे सत्ववतां भवन्ति ॥ परोपकार में ही आनंद, निरीहपना, विनय, सत्य, गंभीरता, रोज विद्या से विनोद और अदीनता इतने गुण सत्यवान पुरुष में होते हैं। उसपर द्रष्टांत. विजय वर्धन नगर में विशाल सेठ का पुत्र विजय नाम का था जिसने गुरु के पास सुना था कि परहित में तत्पर रहना और समा को प्रधान रखना. षडा होने पर भी उसने वह बात याद रखी. एक दिन वो सुसराल में गया और बहु को लेकर आता था रास्ते में पानी निकालने के समय पति को कुवे में पत्नी ने गिराया और पीयर चली गई तो भी पति ने गुरु के बचन से क्रोध नहीं किया. दूसरी बक्क भी वो इज्जत के खातिर लेने को गया और वहां जा कर इशारे से पत्नी को समझा कर शांत कर घर को ले आया लड़के भी हुए और उन लडकों की उम्र बड़ी होने पर एक. लडके ने बाप से पूछा कि आप सब जगह क्यों कहते फिरते हो कि क्षमा करना बहुत अच्छा है बापने उसे उसकी माता की बात कही, लडका ने चकित होकर माता से पूछा। माता ने उसी समय लज्जा के मारे पास छोड दिये पीछे विजय सेठ को बडा दुःख हुआ साधु के पास जाकर प्रायश्चित् मांगा गुरु ने कहा साधु हो जाना चाहिये सेठने पूछा परहित कैसे होगा गुरु ने समझाया कि साधु समान और परहित किसी से नहीं होता, सुन साधु देख के चले, विचार के बोले, देख के गोचरी लेवे और खावे देख कर उपकरण ( पात्र वगैरह ) लेवे और रखे, और पेशाव मल थूक वगै
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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