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________________ (३६) बाप ने ऐसे साधु की संगति कराई इस लिये निरंतर बाप का भी अत्यंत उपकार मानने लगा, श्रावक के बारह वृत लेकर ग्रहस्थी धर्म पालने लगा. . एक समय उसके बापने एक सेठ की लडकी खुबसुरत देख मोहित होकर उस कन्या के बाप से मांगी कन्या के पिता ने ना कही, राजा ने कारण पूछा तब उत्तर मिला कि मेरे दोहिते को भीमकुमार के सामने राज्य नहीं मिलेगा, जिससे बाप चुप होगया भीम कुमार ने वो बात सुनकर ब्रह्मचर्य की जीवन पर्यंत की प्रतिज्ञा लेकर सेठ को समझाकर राजा को कन्या दिलवाई वो रानी से पुत्र भी हुआ और भीम ने उसे बंधु जानं कर सब विद्या पढाकर राज्य के योग्य बनाया, और उसे राज्य भी समय पर दिलाया और भीम प्रतिज्ञा पूरी होने से निर्भय होकर श्रावक धर्म और ब्रह्मचर्य को पालन करने लगा एक दिन इंद्र ने सभा में उसकी प्रशंसा की बह एक द्वेषी देव को सहन नहुई जिससे परीक्षा करने को आया भीमकुमार के सामने एक वृद्ध स्त्री आकर बोली हे भीम ! तू दयालु शिरोमणि है जगत् माननीय है, तेरे गुण सुन कर मेरी यह लडकी जो गुणिकापुत्री हैं और सब कला में चतुर है वो तेरे गुण पर प्रसन्न होकर प्रतिज्ञा कर आई है इस लिये तू उसे अपनी स्त्री बनाले ! जो तू मंजूर नहीं करेगा तो तेरे सामने यह कन्या जीतीं जलेगी ! जिससे स्त्री हत्या का निरर्थक महापाप लगेगा। भीम चुप रहा तब बुढिया बोली जगत् जीव हितकारी कुमार, यदि जो तुझेब्रह्मचर्य बास्त्री संग का नियम हो तो उसे दो मधुरवचनों से संतुष्ट कर कि जिससे शंगाररस के वचन सुनकर वो भी कामाग्नि शांत करे । भीम मौन रहा बुढिया फिर बोली हे नरेन्द्र कुल दीपक । एक समय उस तरफ स्नेह दृष्टि से तो देख कि बिचारी मरती समय भी कन्या शांत होकर दुगति में न जावे । भीम ने उत्तर दिया कि हे भद्रे । विषसे संजीवन डोरी बढती नहीं इस लिये धर्म प्रिय मुक्ति का मार्ग शोध ! यहां पर रोम में भी संसार वासना नहीं है ! बुढिया ने अनेक उपाय किये तो भी बो वृत भंग नहीं करता देख देव रूप में होकर भीम को कहा जैसी इंद्र ने तेरी प्रशंसा की थी, वैसा ही तू है इस लिये तुझे धन्य है, तेरे धर्म में मैंने विघ्न किया है उसकी क्षमा चाहता हूं, देव गया बाद भीम ने ब्रत पाल सद्गति प्राप्त की इस लिये कृतज्ञ होता है वोही धर्म पाकर उसे अच्छी तरह पाल सक्ता है।
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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