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________________ ( १४ ) यही कहा करता था कि यहसब जैन धर्मका प्रताप हैं ! इससे उसके अनुयायी होकर अनेक पुरुष जैन धर्म से राजी होकर देव मंदिर में जाना, गुरु सेवा करना, परोपकार करना, वगैरे उत्तम काय्यों में तत्पर हुये, सर्वत्र उसी की प्रशंसा लोगों के मुंह से निकलने लगी, उस नगर में धर्म घोष मंत्री की भार्या प्रियंगु नाम की थी उसने दासियों के द्वारा उसकी प्रशंसा सुनकर उनको कह दिया कि जिस समय सुजात को रास्ते में देखो उस समय मुझे खबर देना एक समय पर सुजात के उधरसे आने पर दासीओं ने उस सुजातको प्रियंगु को बताया उसने और परिवार ने सुजात को देख कर औरउस की रहनी करनी से सन्तुष्ट होकर सब परिवार सुजातकी प्रशंसा करने लगा जब मंत्री घरमें आया तब सब के मुख से सुजात की बातें सुनकर मंत्री ने मन मैं सोचा कि उस दुष्ट सुजाते ने आकर मेरे घर में भी कुचाल की है ! तो उसका उपाय अवश्य करना चाहिये यह सोचकर मंत्री ने राजा को एक अजान मनुष्य के साथ एक ऐसी चिट्ठी भिजवाई जिसके पढ़ने से राजा के मन में ऐसा खयाल आ - या कि सुजात राजद्रोही है, परन्तु अपने शहर में उसको मारने से तो फिसाद पैदा होगा ऐसा विचार करके उसने विदेश का कार्य प्रसंग निकाल कर सुजात को भेज दिया और साथ में पत्र दिया जिसमें लिख दिया था कि अवसर आने पर मार डालना सुजात उस पत्र को लेकर विदेश चला गया और वहां जाकर राजा को पत्र दिया; परन्तु वहां जो हाकिम था वो बड़ा दयालु था उसने एकांत में सुजात को ले जाकर कहा कि तेरी मृत्यु स है परन्तु मैं एक शर्त पर तुझे वचाऊं यदि तू मेरी भगनी के साथ शादी करे, कर्म के फल बिना भोगे नहीं छूटते यह कर्मफल मान सुजात नें मंजूर किया और शादी होगई, उसकी पत्नी के कोढ का रोग था तो भी सुजात ने पति धर्म पाल कर उसपत्नी की सेवा अच्छी तरह से कर समाधि से उसको धर्म रक्त वनादी, इसकी पत्नी ने मरने के समय तक शुभ कामना कायम रक्खी जिससे स्त्री मर कर स्वर्ग में देव हुई और स्वर्ग से आकर अपना उपमारी जो सुजात था उसे हाथ जोड़ कर कहने लगा कि, नाथ ! आपकी इच्छा क्या है सोही मैं करूं ! सुजातने कहा कि मेरा मिट जावे और मैं इज्जत से बाप से मिलूं तो फिर दीक्षा लेऊंगा । देवता ने मित्र प्रभ राजा के नगर में जाकर उसके शहर का नाश करने
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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