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________________ विरुद्ध है, ऐसे कृत्य श्रावक को छोड़ कर दूसरों को सुख देने वाले कार्य करना चाहिये किन्तु ये सात व्यसन तो दोनों लोक विरुद्ध होने से छोड़ने ही चाहिये। पतंचमांसंच सुराच वेश्या । पापाधि चौर्य पर दार सेवा ॥ एतानि सप्तव्यसनानि लोके । पापाधि के पुंसि सदा भवन्ति ॥१॥ जुआ, मांस, मदिरा, वेश्या गमन, शिकार, चोरी, और पर स्त्री गमन ये सात बातें अधिकतर पापी पुरुष में होती हैं ऐसे पाप छोड़ लोक प्रियता के कारण दान, विनय शील में दृढ़ होना चाहिये। दानेन सत्वानि वशी भवंति । दानेन वैराण्यपि यान्तिनाशम् ॥ . परोपि बंधुत्व मुपैति दानात् । तस्मादि दानं सततं प्रदेयम् ॥ दान से प्राणी वश होते हैं, दान से वैर नाश होता है दान से दूसरे जनभी बन्धुओं की तरह कर्त्तव्य करते हैं, इसलिये योग्यतानुसार दान जीवोंको अवश्य देना चाहिये, जिससे, आप धर्म पाकर दूसरे जीवों को भी धर्म का भागी बनाता है। ॥सुजात कुमार की कथा ॥ चंपा नगरी में एक मित्र प्रभ नामका राजा था, और वहीं एक धन मित्र नगर सेठ था, और उसकी भार्या धनाश्री थी इनके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुवा, लोगों ने वा स्त्रियों ने उसे जन्म से ही प्रसन्न होकर "सजात" सुजात कह कर बुलाते थे इसलिये उसके मा बापों ने भी उसका सुजात ही नाम रक्खा सुजात कुमार शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह बढ़ने लगा जब जवान हुवा तब भी कुचाल न चलकर अच्छे भले समान बय के लड़कों को साथ लेकर परोपकार करने लगा, भगवान् के मंदिर में सब के साथ जाकर वीतराग के गुण गाने लगा और अपने अंगसे, कंठ से, धनसे पूजा सेवा करके आत्मा को पवित्र करने लगा, कभी २ धर्माचार्य के पास जाकर तत्त्व ज्ञान की धर्म कथायें सुनता कभी २ एकांत में बैठ कर धर्म चितवना करता, बाप से खर्च के लिये रुपये पैसे लेता उससेभी वह सुजात कुमार अनेक गरीबों का कष्ट निवारण करता था इससे सर्वत्र उसकी माहिमा होने लगी परन्तु वह तो
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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