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________________ अन्नहकरणपमाए, पच्छित्तपरूवणा कया होइ। पडिसिद्धकरणओ पुण, तं चेव हविज महसदं ॥ २३ ॥ जउ बीजी तिथिनई विषई निश्चय हुइ तउ पोसहादिकनई अणकरिवई प्रायश्चित्त कहिउँ जोईइ, प्रायश्चित्त तु कहिउँ नथी, तेह भणी भजना ज जाणिवी। अनई जउ बोजी तिथिनई विषइ पौषधादिकनु निषेध हुइ तउ बीजी तिथिई पौषधादिकना करिवानई विषइ 'महा' एहवो शब्द पूर्विई छइ जेहनइ एवं प्रायश्चित्त-एतलइ महा प्रायश्चित्त कहिउं हुइ, जेह भणी तीर्थकरई कहिउ जे विधि तेहना अणकरिवानई विषइ जे प्रायश्वित्त आवइ तेहनी अपेक्षाई तीर्थकरई निषेधिउं जे अनुष्ठान तेहना करिवानइं विषइ महाप्रायश्चित्त लागइ। हवइ कोइ एक इम कहइ-'तीर्थकरई कहिउं जे अनुष्ठान तेहना अणकरणहार जेह पुरुष तेहनी अपेक्षाइं भगवंतई अणउपदेसी जे अधिकी क्रिया-तीर्थंकरई उभयकालनई विषइ २ पडिक्कमणां कहिआं छइ ते विधिप्रतिई उल्लंघीनइ त्रणि पडिकणा करइ ते अधिकी क्रिया कहीइतेहना करणहारनइं महाप्रायश्चित्त ऊपजइ, ते किम काई जाणीइ ?'। तेड्नइ इम कहीइ-' अहो महाभाग! सांभलि, तीर्थकरई कहिउँ जे अनुष्ठान तेह प्रतिई तु ते पुरुष न करइ जे महाप्रमादी हुइ ' अनइ ते अधिकी क्रियानु करणहार तु ते हुइ जे प्रमादइंकरी रहित हुइ, ते(जे)ह भणी क्रियानु कष्ट अनिष्ट छइ अनइ दुःखइं करी साधवा योग्य छइ तेह भणी जे अप्रमादी हुइ तेह ज अधिकी क्रियानइं विषइ प्रवर्तइ । अनइ अधिकी क्रिया प्रतिइं तेह ज करइ जे पुरुष आपणा थाकता समुदायनई हीलवानु अर्थी हुइ अनइ तीर्थकरनां जे वचन तेहनइं अणमानवई करी महापापी हुइ। अधिकी क्रियानु करणहार तेह ज हुइ जेहनइं तीर्थकरनां वचननई विषइ आस्था न हुइ, तिह्यां कणि दृष्टांत कहीइ छइजिम कोइ एक भूष(ख)तृषाईंकरी पीडिउ वटेवाऊ हुइ, सूर्यनई किरणईंकरी तप्त एहवा ते वटाऊप्रतिई कोइ एक सत्यवादी मार्गनु जाण एहवू कहइ-'अहो महाभाग ! जेह भणी ईणइ मार्गई नगर ढुंकडं छइ तेह भणी ईणई मागेइंकरीनइं तुं जा'। एहवं ते सत्यवादीनुं वचन सांभलीनई तेहर्नु कहिउं अणमा. नतउ हुँतउ तीणइ मार्गइं न जाइ अनइ बोजइ वेगलइ मार्गइंकरी नगरमाहिं जावा वांछइ । इणइ प्रकारई जे पुरुष भगवंतना वचनप्रतिई सहइ नहीं ते पुरुष भगवंतई कहिउ जे सुगम मार्ग ते मार्ग प्रति छांडीनइ बीजइ मागेईकरी मोक्षरूप जे नगर तेहनई विषई पइसवानइं काजई वांछइ । हवइ के(को)इ एक पुरुष कदाग्रहवंत कल्याणक अनई चतुःपींनी जे तिथि तेहथिकु बोजी जे तिथि तेहनइ विषइ पौषधादिकनुं अनुष्ठान अणमानता हुंता इम कहीइ छइ-"पौषधोपवासाऽतिथिसंवि. भागौ तु प्रतिनियतदिवसानुष्ठेयौ न प्रतिदिवसाचरणीयाविति "। एहवा जे श्रीहरिभद्रसूरिप्रणीत आवश्यकबृहद्वृत्तिना अक्षर तेहनई अनुसारई थाकतो तिथिनई विषइ पोसह प्रमुख जे अनुष्ठान तेहनु निषेध जाणीइ छइ, तेह भणी वीजी तिथिनई विषइ भजना किम कांई कहु छउ' एहवं जे कहइ तेहनई वलतुं
SR No.022109
Book TitleTattva Tarangini Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar Gani, Jambusuri
PublisherMuktabai Gyanmandir
Publication Year1949
Total Pages48
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size9 MB
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