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________________ पृष्ठांक १८३ विषय-सूची] प्रशमरतिप्रकरण विषय पृष्ठांक विषय मोहनीयकर्मके क्षय होनेपर शेष कर्मोका क्षय शरीरका बंधन आठों कर्मोका क्षय करके मुक्तजीव अवश्य हो जाता है मनुष्यलोकमें नहीं ठहरता, ठहरनेका न कोई केवलज्ञानकी प्राप्तिका और विशेष वर्णन १८४ कारण है, न आश्रय और न व्यापार २०१ १९-एकोनर्षिशति अधिकार-समदयात- मुक्तजीव यहाँ नहीं ठहरता है, तो न ठहरो किन्तु उसे ऊस्पर ही जाना चाहिए, ऐसा नियम कारिका २७२-२७६ किस कारणसे है ? इस शंकाका समाधान २०२ समुदवातकी विधि-समुद्रातमें किस समय कौन यदि मुक्तिजीवके क्रिया भी नहीं है, तो ऊर्ध्वगमन योग होता है ? कैसे करता है? इस शंकाका समाधान २०३ २०-विंशति अधिकार योगनिरोध-का० २७७-२८२ मुक्तजीवके अनुपम सुखकी सिद्धिका वर्णन २०४ योगनिरोध करनेकी रीति १९० २२-द्वाविंशति अधिकार-अन्तफल- का०२९६.३१३ योगनिरोध सम्बन्धी शंकाओंका समाधान गृहस्थकी चर्याका वर्णन २०७ मनोयोगके बाद योगनिरोध करता है, उसका पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत आदि निरूपण श्रावकोंके व्रतोंका वर्णन २११ योगनिरोध होनेपर केवलीभगवानकी अवस्थाका ग्रंथकर्ता प्रवचनका माहात्म्य बतलाते हुए कहते हैं, वर्णन जो कुछ मैंने इस ग्रंथमें आदिसे अन्ततक व्युपरतक्रियानिवर्तिध्यानके समय वह शैलेशी कहा है, वह सब प्रवचनमें विद्यमान है, अवस्थाको प्राप्त करते हैं अपनी बुद्धिसे कल्पित नहीं कहा है २१३ १९५ मूलग्रन्थकारकी लघुता २१-एकविंशति अधिकार-मोक्षगमन-विधान " कामना २१५ कारिका २८३-२८५ अन्त्य मंगल २१५ केवली अंतिम समयमें असंख्यात कर्मदलिकोंको टीकाकारकी प्रशस्ति २१६ खपाते हैं, इस तरह वेदनीय, आयु, नाम और टीका बननेका समय २१६ गोत्रकर्मोके समूहको एक साथ नष्ट कर परिशिष्ट१९७ १ अवचूरि २१७ सिद्धपदका वर्णन १९८ २ प्रशमरतिप्रकरणकी कारिकाओंकी अनुक्रमणिका २२९ कुछ वादी मोक्षको केवल अभाव स्वरूप ही मानते ३ संस्कृतटीकामें उद्धृत पद्योंकी अनुक्रमणिका २३२ हैं, उनका निराकरण २०० ४ विशेष शब्द-सूची २१४.
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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