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________________ winnrnmarmanandnaarina श्राद्धविधि प्रकरण त्रिशुध्ध्या चिंतयन्नस्य शतमष्टोत्तरं मुनिः। ... मुंजानोऽपि लभेतैव चतुर्थतपसः फलं ॥ . ___ मन, वचन, काया की एकाग्रता से जो मुनि इस नवकार का १०८ दफे नाप करता है वह भोजन करते हुए भी एक उपवास के तप का फल प्राप्त करता है । कर आवर्त 'नंदावत' के आकार में, शंखावर्त के आकार में करे तो उसे वांछित सिद्धि आदि बहुत लाभ होता है कहा है कि- . कर आवत्ते जो पंचमंगलं, साहूपडिम संखाए । नववारा आवत्तइ, छलंति नो तं पिसायाई ॥ कर आवत्त से ( यानी अंगुलियों से ) नवकार को बारह की संख्या से नव दफा गिने तो उसे पिशा. चादिक नहीं छल सकते। शंखावर्स, नंदावर्त, विपरीताक्षर विपरीत पद, और विपरीत नवकार लक्षवार गिने तो बंधन, शत्रुभय आदि कष्ट सत्वर नष्ट होते हैं। जिससे कर जाप न हो सके उसे सूत, रत्न, रुद्राक्ष, चन्दन, चांदी, सोना. आदि की जपमाला अपने हृदय के पास रख कर शरीर या पहने हुये वस्त्र को स्पर्श न कर सके एवं मेरु का उल्लंघन न कर सके इस प्रकार का जाप करने से महा लाभ होता है । कहा है कि- . अंगुल्यग्रेण यजप्त, यज्जप्तं मेरुलंधने । व्यप्रचितेन यज्जप्तं तत्प्रायोऽल्पफलं भवेत् ॥ १ ॥ अंगुलियों के अप्रभाग से, मेरु उल्लंघन करने से और व्यग्र चित्तसे जो नवकार मंत्र का जाप किया जाता है वह प्रायः अल्प फलदायी होता है। संकुलाद्विजने भव्यः सशब्दारमानवान् शुभः । मौमजान्मानस: श्रेष्ठो, जापः श्लाघ्यपरः परः ॥ २॥ बहुत से मनुष्यों के बीच में बैठ कर जाप करने की अपेक्षा एकांत में करना श्रेयकारी है। बोलकर जाप करने की अपेक्षा मौम जाप करना श्रेयकारी है.। और मौन जाप करने की अपेक्षा मन में ही जाप करना विशेष श्रेयस्कर है। ' जापनांतो विशेऽध्यानं, ध्यानश्रांतो विशेज्जपं । । द्वाभ्यां श्रांत: पठेत्स्तोत्र, मित्येवंगुरुभिः स्मृतः ॥३॥... यदि जाप करने से थक जाय तो ध्यान करे, ध्यान करते थक जाय तो जाप करे, यदि दोनों से थक जाय तो स्तोत्र गिने, ऐसा गुरू का उपदेश है। श्री पादलिप्त सूरि महाराज की रची हुई प्रतिष्ठा पद्धति में कहा है कि जाप तीन प्रकार का है। १ मानस आप. २. उपासु जाप, ३ भाष्य जाप । मानस जाप यानी मौनतया अपने मन में ही विचारणा रूप (अपना ही
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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