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________________ श्राद्धविधि प्रकरण सूताविणय सवित्ती, निवारिया होइ एवंतु ।। शय्या में बैठे हुए नवकार मंत्र गिनना हो तो सूत्र का अविनय दूर करने के लिए मन में हो चिंतन करना चाहिए। ... कितनेक आचार्यों का मत है कि, कोई भी ऐसी अवस्था नहीं हैं कि जिसमें नवकार मंत्र गिनने का अधि. कार न हो, इसलिए हर समय नवकार मंत्र का पाठ करना श्रेयकारी है ( इस प्रकार के दो मत पहिले पंचाशक की वृत्ति में लिखे हुये हैं)। श्राद्ध दिनकृत्य में ऐसा कहा है कि सिज्जा ठाणं पमस्तुणं चिठ्ठिजजा धराणतले, भावबंधु जगन्नाहं नमुक्कारं तओ पढे ॥ शय्या स्थान को छोड़कर पवित्र भूमि पर बैठ कर फिर भाव धर्मबंधु जगन्नाथ नवकार मंत्र का स्मरण करना चाहिये। यति दिन चर्या में लिखा है कि जामिणि पच्छिम जामे, सव्वे जग्गंति बालवुढाई । परमिष्टि परम मंत, भणत्ति सत्तठ वाराओ ॥ रात्रि के पिछले प्रहर बाल वृद्ध आदि सब लोग जागते हैं उस वक्त परमेष्टी परममंत्र का सात आठ वक्त पाठ करना। "नवकार गिनने की रीति" मन में नमस्कार का स्मरण करते हुये सोता उठ कर पलंग से नीचे उतर कर पवित्र भूमि पर खड़ा रह पद्मासन वगैरह आसन से बैठकर या जिस प्रकार सुख से बैठा जाय उस तरह बैठ कर पूर्व या उत्तर दिशा में जिन प्रतिमा या स्थापनाचार्य के सन्मुख मानसिक एकाग्रता करने के लिये कमलबंध करके नवकार मंत्र का जाप करें। "कमलबंध गिनने की रीति" अष्टदलकमल ( आठ पंखड़ी वाले कमल ) की कल्पना हृदय में करें। उसमें बीच की कणिका पर "णमो अरिहंताणं" पद स्थापन करे ( ध्याये ) पूर्वादि चार दिशाओं में “णमो सिद्धाणं" "णमो आयरियाणं" "णमो उवझायाणं" "णमो लोए सवसाहणं" इन पदों को स्थापन करे । और चार चूलिका के पदों को ( एसोपंच णमुक्कारो, सधपावप्पणासणो, मलाणंच सव्वेसि पढम हवा मंगलं) चार कोनों में (विदिशाओं में) स्थापन कर गिने (ध्याये)। इस प्रकार नवकार का जाप कमलबंध जाप कहलाता है। . .. . - श्री हेमचन्द्राचार्य ने योगशास्त्र के आठवे प्रकाश में भी उपरोक्त विधि बतला कर इतना विशेष कहा है कि
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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