SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०.. श्राद्धविधि प्रकरण षट्त्रिंशद्गुरुवर्णानां या वेला भणने भवेत् ॥ सा वेला मरुतो नाडया नाडयां संचरतो लगेत् ॥ ६ ॥ उत्तीस गुरु अक्षर उच्चार करये हुए जितना समय लगता है, उतना ही समय वायु को एक नाड़ी से दूसरी नाड़ी के जाने में लगता है । ( अर्थात् सूर्य से चंद्र और चंद्र से सूर्य नाड़ी में जाते वक्त वायु को पूर्वोक्त टाइम लगता है)। 'पांच तत्वों की समझ' ऊर्ध्व वन्हिरवस्तोयं । तिरश्चीनः समीरणः ॥ भूमिमध्यपुटे व्योम सर्वांगं वहते पुनः ॥ ७ ॥ पवन ऊंचा चढे तब अग्नितत्व, पवन नीचे उतरे तब जलतत्व, तिरछा पवन बहे तब वायुतत्व, नासिका के दो पड़ में पवन रहे तब पृथ्वीतत्व और जब पवन सब दिशाओं में पसरता हो तब आकाश तत्व समझना । 'तत्व का अनुक्रम' वायोर्वन्हेरपां पृथ्व्या । व्योन्नस्तत्व वहेक्रमात् ॥ वह त्योरुभयो नाड्योतिव्योय क्रमः सदा ॥॥ सूर्य नाड़ी और चंद्र नाडी में प्रथम अनुक्रम से वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश ये तत्व निरंतर वहन करते हैं। 'तत्व का काल' पृथ्याः पलानि पंचाशच्चत्वारिंशत्तथांभसः॥ अग्ने स्त्रिंशत्पुनर्वायोविंशतिर्नभसो दशः ॥ ९ ॥ पृथ्वी तत्व पचास पल, जल तत्व चालीस पल, अग्नि तत्व तीस पल, वायु तत्त्व बीस फ्ल, आकाशतत्व दस पल, (अर्थात् पृथ्वी तत्व पचास पल रह कर फिर अग्नि, जल, वायु, आकाश तत्व वहते हैं ) । इस प्रकार तत्त्व बदलते रहते हैं,। “तत्व में करने के कार्य" तत्वाभ्यां भूजल भ्यां स्याच्छांत कार्ये फलोन्नतिः ॥ दीप्ता स्थिरादिके कृत्ये तेजो वाय्वंबरैः शुभम् ॥ १०॥ पृथ्वी और जल तत्व में शांति, शीतल ( धीरे धीरे करने योग्य कार्य करते हुये फल की प्राप्ति होती है ) और अग्नि, वायु तथा आकाश तत्व में तीव्र तेजस्वी और अस्थिर कार्य करना लाभ कारक हैं।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy