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________________ श्राद्धविधि प्रकरण __ प्रधान के ऐसे वचन सुनकर जरा चित्त में दुःखित हो शुकराज विचारने लगा कि सचमुच ही कोई मेरा रूप धारण कर शून्य राज्य का स्वामी बन बैठा है। राज्य, भोजन, शय्या, सुंदरस्त्री, सुंदर महल और धन, इतनी वस्तुओं को शास्त्रों में सूनी छोड़ने की मनाई की है । क्योंकि इन वस्तुओं के सूनी रहने पर कोई भी जबर्दस्त दबाकर उन का स्वामी बन सकता है । खैर अब मुझे क्या करना चाहिये ? अब तो इसे मारकर अपना राज्य पीछा लेना योग्य है। यदि मैं ऐसा न करू तो लोक में मेरा यह अपवाद होगा कि, मृगराज के पुत्र शुकराज को किसी क्रूर पापिष्ट मनुष्य ने मार कर उस का राज्य स्वयं अपने बल से ले लिया है । यह बात मुझ से किस तरह से सुनी जायगी। अब सचमुच ही बड़े विकट संकट का समय आ पहुंचा है। मैंने और मेरी स्त्रियों ने अनेक प्रकारसे समझा कर बहुतसी निशानियां बतलाई तथापि प्रधानने एक भी नहीं सुनी । आश्चर्य है उस कपटी के कपट जाल पर ! मन में कुछ खेद युक्त विचार करता हुवा अपने विमान में बंठ आकाशमार्ग से शुकराज कहीं अन्यत्र चला गया। यह देख नगर में रहे हुए बनावटी शुकराज को प्रधान कहने लगा कि, स्वामिन् ! वह कपटी विद्याधर विमानमें बैठ कर पीछे जा रहा है । यह सुन कर वह कामतृषातुर अपने चित्त में बड़ा प्रसन्न हुवा । इधर उदास चित्त वाला असली शुकराज जंगलों में फिरने लगा। उसे उस की स्त्रियों ने बहुत ही प्रेरणा की तथापि वह अपने श्वसुर के घर न गया । क्योंकि दुःख के समय विचारशील मनुष्यों को अपने किसी भी सगे सम्बन्धी के घर न जाना चाहिये और उसमें भी श्वशुर के घर तो बिना आडम्बर के जाना हीन वाहिये। ऐसा नीतिशास्त्र में लिखा है। कहा है कि, समायां व्यवहारे च वैरिषु श्वशुरौकसि । आडंबराणि पूज्यंते स्त्रीषु राजकुलेषु च ॥१॥ सभा में, व्यापारियों में, दुश्मनों में, श्वशुर के घर, स्त्रीमण्डल में और राजदरबार में आडम्बर से ही मान मिलता है। शून्य जंगल के वास में यद्यपि विद्या के बल से सर्व सुख की सामग्री तयार कर ली है, तथापि अपने राज्य की चिन्ता में शुकराज ने छह मास महा दुःख में व्यतीत किये। आश्चर्य की बात है कि, ऐसे महान पुरुषों को भी ऐसे उपद्रव भोगने पड़ते हैं। किस मनुष्य के सब दिन सुख में जाते हैं ? ... कस्य वक्तव्यता नास्ति को न जातो मरिष्यति । केन न व्यसनं प्राप्त कस्य सौख्यं निरंतरं ॥१॥ कथन करना किसे नहीं आता, कौन नहीं जन्मता, कौन न मरेगा, किसे कष्ट नहीं है और किसे सदा सुख रहता है । - एक दिन सौराष्ट्र देश में विचरते हुये आकाशमार्ग में एकदम शुकराज कुमार का विमान अटका। इस से वह एकदम नीचे उतरा और चलते हुये विमान के अटकने का कारण दूंढने लगा उस समय वहां पर देवताओं से रवित सुवर्णकमल पर बैठे हुये शुकराजकुमार ने अपने पितामृगध्वज केवली महात्माको देखा। उसने
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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