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________________ श्राद्धविधि प्रकरण उनके तरफ से हो दुःख उत्पन्न हो तो फिर पानी में से अग्नि उत्पन्न होने के समान गिना जाय । पिता से भी माता विशेष पूजने योग्य है । ज्ञानी पुरुषों ने भी यही फरमाया है कि-पिता की अपेक्षा माता सहस्रगुणी विशिष्ट मानने योग्य है। ऊढो गर्भ: प्रसव समये सोढ प्रत्युप्रशूलम् । पथ्याहारः पनविधिमिः स्तन्यपानप्रयत्नैः ।। विष्टा मूत्र प्रभृति मलिनैः कष्टमासाद्य सघ । स्त्रात: पुत्रः कथमपि यया स्तूयतां सैव माता ॥ १॥ "नौ महीनेपर्यंत जिस का भार उठा कर गर्भ धारण किया, प्रसव के समय अतिशय कठिन शूल वगैरह की दुःसह वेदना सहन की, रोगादिक के समय नाना प्रकार के पथ्य सेवन किये, स्नान कराने में, स्तनपान कराने में और रोते हुए को चुप रखने में बहुतसा प्रयत्न किया, तथा मल मूत्रादि के साफ करने आदि में बहुतसा कष्ट सहन कर जिसने अपने बालकका अहर्निश पालन पोषण किया सचमुच उस माता की ही स्तवना करो"। . ऐसे वचन सुनकर मानो शोक के बिंदु हो न हों, आंखों में से ऐसे अश्रुकण टपकाते हुये शुकराज ने चक्रश्वरी से कहा- "इन अमूल्य तीर्थों के नजदीक आकर उनकी यात्रा किये बिना किस तरह पीछा फिरू? चाहे जैसा जल्दी का काम हो तथापि यथोचित अवसर पर आए हुए भोजन को कदापि नहीं छोड़ना चाहिये, वैसे ही यथोचित धर्म कार्य को भी नहीं छोड़ना चायिए। तथा माता तो मात्र इस लोक के स्वार्थ का कारण है परन्तु तीर्थ सेवन इस लोक और परलोक के अर्थ का कारण है, इसलिये तीर्थयात्रा करके मैं शीघही मातुश्री से मिलनार्थ आऊंगा यह बात तू सत्य समझना । तू अब यहां से पीछी जा! मैं तेरे पीछे २ ही शीघ्र आ पहुंचूंगा । मेरी माता को भी यहो समाचार कहना कि 'शुकराज अभी आता है'।" यह समाचार ले वह देवी क्षितिप्रतिष्ठित नगर तरफ चली गई । शुकराज कुमार यात्रार्थ गया। जहां शाश्वतो प्रतिमायें हैं वहां जाकर तत्रस्थ चैत्यों को भक्तिभाव पुरस्सर वन्दन पूजन कर शुकराज ने अपनी आत्मा को कृतार्थ किया; यात्रा कर वहां से लौटते हुए सत्वर ही अपनी दोनों स्त्रियों को साथ ले अपने श्वसुर एवं गांगिल ऋषि की आज्ञा लेकर और तीर्थपति को नमस्कार कर एक अनुपम और अतिशय विशाल विमान में बैठकर बहुत से विद्याधरों के समुदाय सहित शुकराज बड़े आडंबर के साथ अपने नगर के समीप आ पहुंचा । खबर मिलने पर राजकुल एवं सर्व नागरिक लोक शुकराज के सामने आये । राजा को आज्ञा से नगर जनों ने शुकराज का बड़ा भारी नगरप्रवेश महोत्सव किया ! शुकराज का समागम वर्षाऋतु के समान सब को अत्यानन्दकारी हुवा । अब शुकराज युवराज के समान अपने पिता का राज कार्य सम्हालने लगा। एक समय जब कि सर्व पुरुषों को आनंद देने वाली वर्षा ऋतु का समय था तब राजा अपने दोनों पुत्रों एवं परिवार सहित शहर से बाहर क्रीड़ार्थ राज बगीचे में गया। वहां पर सब लोग अपने समुदाय से स्वच्छंदतया आनंद क्रीडा में प्रवृत्ति करने लगे कि इतने में बड़ा भारी कोलाहल सुन पड़ा। राजा ने पूछा कि यह कोलाहल कैसे हो रहा है? तब एक सुभट ने वहां आकर कहा हे महाराज! सारंगपुर नगर के वीरांग नामक राजा का पराक्रमी सूर नामा पुत्र
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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