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________________ श्राद्धविधि प्रकरण की श्रावकोंके हितके लिये श्राद्धविधि-श्रावकविधि प्रकरण की श्राद्धविधि कौमुदी नामक यह टीका रची है सो चिरकाल तक पंडितजनों को जय देने वाली हो कर जयवन्ती वर्तो। यह आचार प्रपासमान महिमा, वाला बड़ा ग्रन्थ है, जैनाचार विचार ज्ञात करता, मुक्तिपुरी पन्थ है। प्राज्ञों के हृदयंगमी हृदय में, कंठस्थ यह हार है, हस्तालम्बक सारभूत जगमें, यह ज्ञान भाण्डार है। निश्चय औ व्यवहार सार समझै, सम्यक्त्व पाले वही, उपसर्गे अपवाद से सकल यह, वस्तु जनावे सही । प्राणीको परमार्थ ज्ञान मिलने, में है सुशैली खरी, पूर्वाचार्य प्रणीत ग्रन्थ रचना, हो तारनेको तरी ! यह भाषान्तर शुद्ध श्राविधिका, हिन्दी गिरामें करा, . होगा पाठकवृन्द को हिततया, स्पष्टार्थ जिसमें भरा। श्रावक श्री पुखराज और मनप्ता, चन्द्राभिधानो यति, प्रेरित हो अनुबाद कार्य करने, की हो गई है मती ।। सम्बत् विक्रम पञ्च अस्सी अधिके उन्नीस सौमें किया, है हिन्दी अनुवाद बांच जिसको होता प्रफुल्लित हिया। हिन्दी पाठक वृन्दसे विनय है 'भिक्षु तिलक' की यही, करके शुद्ध पढें कदापि इसमें कोई त्रुटि हो रही । श्राद्धविधिप्रकरण समाप्त।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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