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________________ amanarwww श्राद्धविधि प्रकरण सागर सूरि हुये। जिन्होंने विविध प्रकार बहुतसे शास्त्रों पर चूणिरूपी लहरोंके प्रगट करनेसे अपने नामकी सार्थकता की है। श्रुतगत विविधालायक समुद्धृतः समभवंश्च सूरीन्द्राः। __कुलमण्डना द्वितीयाः श्रीगणरत्नास्तृतीयाश्च ॥३॥ दूसरे शिष्य श्री कुलमण्डन सूरि हुये जिन्होंने सिद्धान्त ग्रन्थोंमें रहे हुये अनेक प्रकारके आलाचे लेकर विचारामृत संग्रह जैसे बहुतसे ग्रन्थोंकी रचना की है। एवं तीसरे शिष्य श्री गुणरत्न सूरि हुये हैं। षट्दर्शनवृत्तिक्रिया रत्नसमुच्चय विचार निचवजः। श्रीभुवनसुन्दरादिषु भेजुर्विद्यागुरुत्वं ये ॥ ४॥ .जिस गुणरस्न सूरि महाराज ने षट्दर्शन समुच्चय की बड़ी वृत्ति और हैमी व्याकरण के अनुसार क्रियारत्न समुच्चय वगैरह विवार नियम याने विचारके समूहको प्रगट किया है। और जो श्री भुवनसुन्दर सूरि आदि शिष्यों के विद्यागुरु हुए थे। श्रीसोमसुन्दरगुरुप्रवरास्तुर्या अहार्य महिमानः। ___ येभ्यः संततिरुच्च भवतिद्वधा सुधमभ्यः॥५॥ जिनका अतुल महिमा है ऐसे श्री सोमसुन्दर सूरि चतुर्थ शिष्य हुए। जिनसे साधुलाम्वीओं का परिवार भली प्रकार विस्तृत हुआ। जिस तरह सुधर्मास्वामी से ग्रहणा आसेवना की रीत्यानुसार साधु साध्वी प्रवर्ते थे। यति जितकल्पविकृतिश्च पंचमाः साधुरत्न मूरिवराः। सैर्मादृशोमष्यत करप्रयोगेण भवकूपात् ॥६॥ यति जीतकल्पवृत्ति वगैरह ग्रन्थोंके रचने वाले पांचवें शिष्य श्री साधुरत्न सूरि हुए कि जिन्होंने हस्ताबलंबन देकर मेरे जैसे शिष्योंको संसाररूप कूएमें डूबते हुओंका उद्धार किया। श्रीदेवसुन्दरगुरोः पट्टे श्रीसोमसुन्दरगणेन्द्राः। युगवरपदीं प्राप्तास्तेषां शिष्याश्च पञ्चैते ॥ ७॥ पूर्वोक्त पांच शिष्योंके गुरु श्रीदेवसुन्दरसूरि के पाट पर युगवर पदवीको प्राप्त करने वाले श्रीसोमसुन्दर सरि हुये और उनके भी पांच शिष्य हुये थे। मारीसवमनिराकृति सहस्रनामस्मृति प्रभृति कृत्यः। श्रीमुनिसुन्दरगरवश्चिरन्तनाचार्यमहिमभृतः॥८॥ पूर्वाचार्यों के महिमाको धारण करने वाले, संसिकरं स्तोत्र रच कर मरकी रोगको दूर करने वाले, सहस्रावधानी के नाम वगैरह से प्रख्यात श्रीमुनिसुन्दर सूरि प्रथम शिष्ये हुये। श्रीजयचन्द्रगणेन्द्राः निस्तन्द्रा संघगच्छकार्येषु । श्रीभुवन सुन्दरवरा दूरविहारंगणोपकृतः ॥ ६ ॥
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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