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________________ श्राद्धविधि प्रकरण ४०३ अमुक मुनि बड़ा तप करके फिरसे गच्छमें आने वाला है। इससे उनका प्रवेश महोत्सव बड़े सत्कार के साथ करना योग्य है। फिर राजा अपनी यथाशक्ति उसे प्रवेश करावे । सत्कार याने उस पर शाल दुशाला चढ़ाना, वाजित्र बजाना, अन्य भी कितनेक आडम्बर से जब गुरुके पास आवे तब उस पर वे वासक्षेप कर । यदि वैसा श्रद्धालु राजा न हो तो गांवका मालिक सत्कार करे। यदि वैसा भी न हो तो ऋद्धिवन्त श्रावक करे | और यदि वैसा श्रावक भी न हो तो श्रावकों का समुदाय मिलकर करे । तथा ऐसा प्रसंग भी न हो तो फिर साधु साध्वी वगैरह मिलकर सकल संघ यथाशक्ति सत्कार करे । सत्कार करने से गुणोंकी प्राप्ति होती है सो बतलाते हैं। पम्भावणा पवयणे, सद्धा जगणं तदेव बहुमाणो । मोहवणा कुतीथ्य | जीश्रतह तीथ्य बुडी ॥ १॥ जैन शासन की उन्नति तथा अन्य साधुओं को प्रतिमा वहन करने की श्रद्धा उत्पन्न होती है । उनके दिलमें विचार आता है कि यदि हम भी ऐसी प्रतिमा वहन करेंगे तो हमारे निमित्त भी ऐसी जैन शासन की प्रभावना होगी । तथा श्रावक श्राविकाओं या मिथ्यात्बी लोगोंको जैन शासन पर बहुमान पैदा होता है जैसे कि दर्शक लोग विचार करें कि अहो आश्चर्य कैसा सुन्दर जैन शासन है कि जिसमें ऐसे उत्कृष्ट तपके करने वाले हैं। तथा कुतीर्थियों की अपभ्राजना हेलना होती है भव्य जीव वैराग्य पाकर असार संसार का परित्याग करके वृहत्कल्प भाष्य की मलयगिरी सूरिकी की हुई वृत्तिमें उल्लेख मिलता है। । एवं जैन शासन की ऐसी शोभा देख कर कई मुक्ति मार्ग में आरूढ़ हो सकते हैं । इस प्रकार तथा यथाशक्ति श्री संघका बहुमान करना, तिलक करना, चन्दन जवादि सुरभित पुष्पादि वगैरह से भक्ति करना । इस तरह संघका सत्कार करने से और शासन की प्रभावना करने से तीर्थंकर गोत्र आदि महान गुणोंकी प्राप्ति होती है। कहा है कि पुष्व नागणे, सुप्रभक्ती पवयण पभावणया । एएहिं कारणेहिं, तिथ्ययरतं लहइ जीवो ॥ १ ॥ अपूर्व ज्ञानका ग्रहण करना, ज्ञान भक्ति करना, जैन शासन की उन्नति करना इतने कारणों से मनुष्य तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है 1 भावना मोक्षदा स्वस्थ, स्वान्य योस्तु प्रभावना | प्रकारेणाधिकायुक्तं, भावनातः प्रभावना ॥ २ ॥ भावना अपने आपको ही मोक्ष देने वाली होती है । परन्तु प्रभावना तो स्व तथा परको मोक्षदायक होती है। भावना में तीन अक्षर हैं और प्रभावना में हैं चार । प्र अक्षर अधिक होने के कारण भावना से प्रभावना अधिक है। "आलोयण" गुरुकी जोगवाई हो तो कमसे कम प्रति वर्ष एक दफा आलोयणा अवश्य लेनी चाहिए । इसलिये कहा है कि
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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