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________________ श्राद्धविधि प्रकरण नजति चित्तभासा, तहय विचित्तानो देसनीईयो। चम्भुआई बहुसो, दीसंति भहिं भयंतेहिं ॥२॥ अपने घरसे निकल कर हजारों आश्चर्यो से परिपूर्ण जो पृथ्वी मंडल को नहीं देखता वह मनुष्य कुएमें रहे हुए मेंढकके समान है। सर्व देशोंकी विचित्र प्रकार की भाषाएँ एवं भिन्न भिन्न देशोंकी विचित्र प्रकार की भिन्न भिन्न नीतियां देशाटन किये बिना नहीं जानी जा सकती। तरह तरह के अद्भुत आश्चर्य देशाटन करने से ही मालूम होते हैं। पूर्वोक्त विचार कर विजयश्री एक दिन रात्रिके समय हाथमें तलवार लेकर किसीको कहे बिना ही एकाकी अपने शहरसे निकल गया। अब वह ज्ञाताहात देशाटन करता हुआ एक रोज भूख और प्याससे पीड़ित हो एक जंगलमें भटक रहा था उस समय सर्वालंकार सहित किसी एक दिव्य पुरुषने उसे स्नेह पूर्वक बुला कर सर्व उपद्रव निवारक और सर्व इष्ट सिद्धि दायक इस प्रकार के दो रस्न समर्पण किये । परन्तु जब कुमार ने उससे पूछा कि तुम कौन हो तब उसने उत्तर दिया कि जब तुम अपने नगर में वापिस जाओगे तब वहां पर आये हुए मुनि महाराज की वाणी द्वारा मेरा सकल वृत्तान्त जान सकोगे। अब वह उन अचिंत्य महिमा युक्त रत्नोंके प्रभाव से सर्वत्र इच्छानुसार विलास करता है। उसने कुसुम पूर्ण नगर के देवशर्मा राजाकी आंखकी तीव्र ब्यथा का पटह बजता सुन कर उसके दरबाजे में जाकर रत्नके प्रभावसे उसके नेत्रोंकी - तीब्र ब्यथा दूर की। इससे तुष्टमान होकर राजाने अपना सर्वस्व, राज्य और पुण्य श्री नामक पुत्री कुमार को अर्पण की और राजाने स्वयं दीक्षा अंगीकार की। यह बात सुनकर उसके पिताने उसे बुला कर अपना राज्य सवर्पण कर स्वयं दीक्षा अंगीकार कर की। इस प्रकार दोनों राज्य के सुखका अनुभव करता हुवा विजय भी अब सानन्द अपने समय को व्यतीत करता है। एक दिन तीन ज्ञानको धारण करने वाले देव शर्मा राजर्षि उसका पूर्व भव वृत्तान्त पूछने से कहने लगे कि 'हे राजन् ! क्षेमापुरी नगरी में सुब्रत नामक सेठने गुरुके पास यथाशक्ति कितने एक चातुर्मासिक नियम अंगीकार किये थे। उस वख्त वह देख कर उसके एक नौकर का भी भाव चढ गया जिससे उसने भी प्रति वर्ष चातुर्मास में रात्रि भोजन न करने का नियम लिया था। वह अपना आयुष्य पूर्ण कर उस नियम के प्रभाव से तू' स्वयं राजा हुआ है, और वह सुब्रत नामक श्रावक मृत्यु पाकर महद्धिक देव हुआ है, और उसीने पूर्व भवके स्नेहसे तुझे दो रत्न दिये थे। यह बात सुन कर जातिस्मरण ज्ञान पाकर वही नियम फिरसे अंगीकार करके और यथार्थ रीतिसे परिपालन करके विजयश्री राजा स्वर्गको प्राप्त हुआ, और अन्तमें महा विदेह क्षेत्रमें वह सिद्धि पदको पायगा। इस लिये चातुर्मास सम्बन्धी नियम अंगीकार करना महा लाभकारी है। लौकिक शास्त्रमें भी नीचे मुजब चौमासी नियम बतलाये हुए हैं। बसिष्ट ऋषि कहते हैं कि कथं स्वपिति देवेशः, पद्मोद्भव महाणेवे। ____सुप्ते च कानि वानि, वर्जितेषु च किं फलम् ॥१॥ देवके देव श्रीकृष्ण बड़े समुद्र में किस लिये सोते हैं ? उन्होंके सोये बाद कौन कौन से कृत्य वर्जन चाहिए और उन कृत्यों को वर्जने से क्या फल मिलता है ? ५०
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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