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________________ श्रादविधि प्रकरण अधौतमुखवस्त्राधिनग्नश्च मलिनां शुकः ॥ सव्येन हस्तेनादात्त । स्थालो भुजीत न क्वचित् ॥३॥ हाथ पैर मुख वस्त्र बिना धोये, नग्न हो कर, मलिन वस्त्र पहिन कर, बांये हाथमें थाली उठा कर, कदापि भोजन न करना, एकवस्त्रान्वितश्चाद्र बासावेष्टित मस्तकः॥ अपवित्रोऽतिगाक्यश्च, न भुजीत विचक्षणः॥४॥ एक ही वस्त्र पहिन कर, भीने वस्त्रसे, मस्तक लपेट कर, अपवित्र रह कर, अति लालची होकर विवक्षण पुरुषको कदापि भोजन न करना चाहिये। उपानत्सहितो व्यग्रचित्तः केवल भूस्थितः॥ . पर्यकस्थो विदिग् याम्याननो नाद्यात्कशासनः॥५॥ जूता पहिने हुये, चपल चित्तसे, केवल जमीन पर बैठके, पलंग पर बैठके, विदिशाके सन्मुख बैठ कर, दक्षिण दिशाके सम्मुख बैठ कर और पतले या हिलते हुये आसन पर बैठ कर भोजन न करना। आसनस्थपदो नाबाद श्वश्र्चण्डालेनिरीक्षतः॥ पतितश्च तथा भिन्न भाजने मलिनेऽपि च ॥६॥ ___ आसन पर पैर रख कर, कुत्ते, चांडाल, धर्मभ्रष्ट, इतनों के देखते हुये, टूटे हुये या मलिन वतन में भोजन न करना। अमेध्यसंभवं नाद्यात, दृष्ट भ्रूणादिघातकः, रजस्वलापरिस्पृष्ट, पाघातं गतोश्वपक्षिभिः॥७॥ विष्टा करने की जगह में उत्पन्न हुये, बाल हत्या वगैरह महा पाप करने वालेसे देखे हुये रजस्वला स्त्री द्वारा स्पर्श किये हुये, गाय, श्वान, पंखी द्वारा सूघे हुये भक्ष्य पदाथ को भी भक्षण न करना। अज्ञातागममज्ञातं, पुनरुश्नीकृतं वथा, युक्तंच बचबचाशन्दै नांद्याद्वक्त्रविकारवान् ॥८॥ अनजान स्थानसे आये हुये तथा अज्ञात एवं फिरसे गरम किये हुये खाद्य पदार्थ को न खाना । तथा मुखाकृति विकृति करके या चपचप शब्द करते भोजन न करना। उपाव्हानोत्पादितप्रीति, कृतदेवा भिधास्मृतिः, समे पृथा वनत्युच्चैः, निविष्टो विष्टरे स्थिरे॥६॥ मातृस्व स्पंबिका जामी भार्याध पक्कमादरात् । शुचिभिभुक्तवभ्दिश्च । दत्तं चाद्याऽज्जने सति ॥१०॥ कृतमौनमवक्रांगें । वहद्दक्षिणनासिकां ॥ प्रातिभक्ष्य समाधाण । हतहग दोषविक्रियं ॥११॥ नातिक्षारं न चात्यम्यलं । नात्युष्णं नातिशीतलं ॥ नातिशाकं नातिगोल्यं । मुखरोचकमुच्चकैः ॥ १२॥ ४५
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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