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________________ श्राद्धविधि प्रकरण श्वरी देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वियोग रहित प्रीति युक्त सुख रूपी लक्ष्मी और पुत्र पौत्रादिक सन्ततिसे तुम वधू वर चिरकाल तक विजयी रहो। फिर उचित कार्य करने में चतुर चक्केश्वरी देवीने विवाह की सर्व सामग्री तयार कराकर समहोत्सव और विधि पूर्वक उन्होंका पाणिग्रहण कराया। फिर चक्केश्वरी देवीने अपने दिव्य प्रभाव से मणि रत्नोंसे जड़ित एक सुन्दर मन्दिर बना कर वर वधूको समर्पण किया। अब पूर्व पुण्यके योगसे तथा चक्केश्वरी देवीकी सहायसे पूर्ण मनोरथ रत्नसार देवांगनाओं के समान उन दोनों सुदरीयों के साथ सांसारिक सुखविलास भोगने लगा। उस तीर्थराज की भक्तिसे, दिव्य ऋद्धिके सुख परिभोग से और वैसे ही प्रकारकी दोनों बधुओंसे रत्नसार को इस प्रकारका सुख प्राप्त हुआ दि. जिससे उसके सर्व मनोरथ सफल हुये। शालीभद्र को गोभद्र नामक देवता पिता सम्बन्ध के कारण सर्व प्रकारके दिव्प सुख भोग पूर्ण करता था। उससे भी बढकर आश्चर्य कारक यह है कि माता पिताके सम्बन्ध विना चक्र श्वरी देवी स्वयं ही उसे मनोवांछित भोगकी संपदायें पूर्ण करती है। ___एक समय चक्केश्वरी देवीकी आज्ञासे चंद्रचूड देवताने कनकध्वज राजाको अशोकमंजरी, तथा तिलक मंजरीके साथ रत्नसार के विवाह सम्बन्धी बधाई दी। इस हर्षदायक समाचार को सुनकर कनकध्वज राजा स्नेह प्रेरित हो वर-वधूको देखनेकी उत्कंठा से अपनी सेना सहित वहां जानेको तैयार हुआ। मंत्री सामन्त परिवार सहित राजा थोड़े ही दिनोंमें उस स्थान पर आ पहुंचा कि जहां रत्नसार रहता था, रत्नसार कुमार, तोता, अशोकमंजरी, और तिलकमंजरी ने समाचार पाकर राजाके सन्मुख जाकर प्रणाम किया। जिस प्रकार प्रेम-प्रेरित दो बछडियां अपनी माता गायके पास दौड़ आती हैं वैसे ही अलौकिक प्रेमसे दोनों पुत्रियां अपनी मातासे आ मिलीं। रत्नकुमार के वैभव एवं देवता सम्बन्धी ऋद्धिको देखकर परिवार सहित राजा परम पंतोषित हो उस दिनको सफल मनाने लगा। कामधेनु के समान चक्रेश्वरी देवीकी कृपासे रत्नसार कुमारने सैन्य सहित राजाका उचित आतिथ्य किया। उसकी भक्तिसे रंजित हुये राजाने अपने नगरमें वापिस जानेकी बहुत ही जल्दी की, तथापि उससे वापिस न जाया गया, कुमारकी की हुई भक्तिसे और वहां पर रहे हुये उस पवित्र तीर्थकी सेवा करनेसे राजाआदि ने अपने वे दिन सफल गिने। जिस प्रकार कन्याओं को ग्रहण करके हमें कृतार्थ किश है वैसे ही हे पुरुषोत्तम, कुमार! आप हमारी नगरीमें आकर उसे पावन करें! राजाकी प्रार्थना स्वीकार करने पर एक दिन राजाने रत्नसार कुमार आदिको साथ लेकर अपने नगरप्रति प्रस्थान किया। अपनी सेना सहित विमानमें बैठकर चंद्रचूड एवं चक्रेश्वरी आदि भी कुमारके साथ आये। अवि. लम्ब प्रयाणसे राजा उन सबके साथ अपनी नगरीके समीप पहुचा। राजाने बड़े भारी महोत्सव सहित कुमारको नगरमें प्रवेश कराया। राजाने कुमारको प्रसन्न होकर नाना प्रकारके मणि, रत्न, अश्व, सेवक आदि समर्पण किये। अपने पुण्य प्रभावले ससुरके दिये हुये महलमें रत्नसार कुमार उन दोनों स्त्रियोंके साथ भोग विलास करने लगा सुवर्णके पिंजड़ेंमें रहा हुआ कौतुक करनेवाला शुकराज प्रहेलिकाक व्यासके समान उत्तर देता था। स्वर्गमें गये हुयेके समान रत्नसार कुमार माता, पिता या मित्रों वगैरह को कभी
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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