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________________ ३१४ श्राद्धविधि प्रकरण करने में हिचकिचाना नहीं। सिंहके समान एक ही उछालमें कार्य करना। यह गुण सिंहसे सीख लेना योग्य है। बगलासे भी दो उत्तम गुण लिये जा सकते हैं। बकवचिन्तयेदर्थान् । सिंहवच्च पराक्रमं ॥ कवच्चावलुम्पेत । शशवच्च पलायनं ॥ बगलेके समान विचार विचार कर कदम रक्खे । ( अपना कार्य न घिगड़ने देना, उसमें दत्त वित्त रहना यह गुण बगलेसे सीख लेना चाहिये।) सिंहके समान पराक्रम रखना, वरगडाके समान छिप जाना, और खरगोसके समान प्रसंग पड़ने पर दौड़ जाना । इसी प्रकार मुरगेके चार गुण लेना चाहिये । प्रागुत्थानं च युद्ध च, संविभागं च बंधुषु । स्त्रीययाक्रम्य मुंजीव, शितेच्चत्वारि कुक्कयात् ॥ सबसे पहले उठना, युद्धमें पीछे न हटना, सगे सम्बन्धियों में बाँट खाना, अपनी स्त्रीको साथ लेकर भोजन करना, ये चार गुण मुर्गेसे सोखना । कौवेसे भी पांच गुण सीखलेना योग्य है । गूढं च मैथुनं धाष्ट्यं काले चालय संग्रहः, अप्रपादमविश्वास, पंच शिक्षेत वायसात् ॥ गुप्त मैथुन करना, धीठाई रखना, समय पर अपने रहनेका आश्रय करना, अप्रमादी रहना, और किसी का भी विश्वास न रखना, ये पांच गुण कौवेसे सीखना । कुत्ते से छह गुण मिलते हैं। बव्हासी चाल्पसंतुष्ट, सुनिद्रो लघुचेतनः । स्वामिभक्तश्च शूरश्च, षडेते श्वानतो गुणः ॥ मिलने पर अधिक खाना, थोड़े पर भी संतोष रखना, स्वल्प निद्रा लेना, सावधान रहना, जिसका खाना उसकी सेवा करना। शूर वीर रहना, ये छह गुण कुत्तेसे सीखना चाहिये। एवं तीन गुण गधेसे मिल सकते हैं। आरूढं तु वहेद् भारं, शीतोष्णं न च विंदति, संतुष्टश्च भवेन्नित्यं, त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ॥ ऊपर पड़े भारको वहन करना, सर्दी गर्मी सहन करना, निरंतर संतोष रखना, ये तीन गुण गर्दभसे सीखना चाहिये। इस लिये सुश्रावक को नीति शास्त्र अभ्यास करना चाहिये । इस विषयमें कहा है कि: हित महित मुचित मनुचित, मवस्तु वस्तुस्वयं न यो वेति, ___सपथः शृंगविहीनः संसारवने परिभ्रपति ॥ जो मनुष्य हित और अहित; उचित और अनुचित, वस्तु और अवस्तुको नहीं जानता वह सचमुच ही संसार रूप जंगलमें परिभ्रमण करने वाले सींग और पुच्छ रहित एक पशुके समान है। नो वक्तुं न विलोकितं न हसितं न क्रोडिन्तु नेरितु॥ न स्थातुन परीक्षितुन पणितुनो राजितु नार्जितु ॥१॥ नो दातुन विचेष्टितुन पठितु नानिदितुनौधितु। __ यो जानाति जनः स जीवति कथं निर्लज्जशिरोमणिः ॥२॥ बोलना, देखना, हंसना, खेलना, चलना, खड़े रहना, परखना, प्रतिक्षा करना, सुशोभित करना, कमाना, दान देना, चेष्टा करना, अभ्यास करना, निन्दा, करना, बढ़ाना, जो मनुष्य इतने कार्य नहीं जनता, वैसे
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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