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________________ منتشنششششفى श्राद्धविधि प्रकरण पुरुषको अपमान को आगे रखकर मानको पीछे करके अपने स्वार्थका उद्धार करना योग्य है। क्योंकि स्वार्थभ्रष्टता ही मुर्खता है। जहांपर जानेसे सम्मान न मिलता हो, मीठे बचन तक न बोले जाते हों, जहाँपर गुण और अवगुण की अज्ञता हो ऐसे स्थान पर कदापि न जाना। हे युधिष्ठिर ! जो बिना बुलाये किसीके घरमें या किसीके कार्यमें प्रवेश करता है, बिना बुलाये बोलता है, और बिना दिये आसन पर बैठता है उसे अधम पुरुष समझना चाहिये। असमर्थ होने पर क्रोध करे, निर्धन होने पर मानकी इच्छा रख्खे, अवगुणी होते हुए गुणी जन पर द्वेष रख्खे, तीनों जनोंको मूर्ख शिरोमणि समझना। माता पिताका भरन पोषण न करने वाला पूर्व कृत कार्यको याद करके मांगने वाला, मृतककी शय्याका दान लेने वाला मर कर फिर पुरुष नहीं बनता। अपनेसे अधिक बलवानके कब्जेमें आये हुये बुद्धिमान पुरुषको अपनी लक्ष्मी बचानेके लिये वैतसी वृत्ति रखना, परन्तु किसी समय उसके साथ भुजंगी वृत्ति न रखना। वैतसी वृत्ति-नम्रता वृत्ति रखने वाला मनुष्य क्रमशः बड़ी रिद्धिको प्राप्त करता है और भुजंगी वृत्तिसर्पके समान क्रोधी वृत्ति रखने वाला मनुष्य मृत्युके शरण होता है। जिस प्रकार कछवा अपने आंगोपांग संकोच कर प्रदार भी सहन कर लेता है, वैसे हो बुद्धिमान पुरुष किसी समय दब जाता है, परन्तु जब समय आता है तब बराबर काले नागके समान पराक्रमी हो उसे अच्छी तरह पछाड़ता है। जिस प्रकार महा प्रचंड वायु एक दूसरेके आश्रयसे गुंफित हुये बृक्षोंमें नहीं उखेड़ सकता वैसे ही यदि दुर्बल मनुष्य भी बहुतसे मिले हुये हों तो बलवान् मनुष्य उनका बाल बांका नहीं कर सकता। जिस प्रकार गुड़ खानेसे बढ़ाया हुवा जुखाम अन्तमें निर्मूल हो जाता है वैसे ही बुद्धिमान पुरुष भी शत्रुको बढ़ाकर वक्त आनेपर उखेड़ डालता है। सर्वस्व हरन करने में समर्थ शत्रुओंको जैसे वड़वानलको समुद्र अपने पेटमें रखकर संतोषित रखता है। वैसे ही बुद्धिमान पुरुष भी कुछ थोड़ा थोड़ा देकर संतोषित रखता है । जिस प्रकार पैर में लगे हुये कांटेको कांटेसे ही निकाल दिया जाता है वैसे ही बुद्धिमान पुरुष तीक्ष्ण शत्रुको भी तीक्ष्ण शत्रुसे ही पराजित करता है। जो मनुष्य अपनी और दूसरेकी शक्तिका विचार किये बिना उद्यम करता है, वह मेघकी गर्जनासे क्रोधित हुये केसरी-सिंहके समान उछल उछल कर अपने ही अंगका विनाश करता है, परन्तु उसपर बल नहीं कर सकता। उपाय द्वारा ऐसे कार्य किये जा सकते हैं कि जो कार्य पराक्रमसे भी नहीं किये जा सकते। जैसे कि किसी कन्वेने सुवर्णके तारसे काले सर्पको भी मार डाला। नदी, नखवाले जानवर, सिंगवाले जानवर, हाथमें शस्त्र रखने वाले मनुष्य, स्त्री और राज दरवारी लोग इनका विश्वास कदापि न रखना। सिंहसे एक, एक बगले से, चार मुर्गेसे, पांच कौवेसे, छह कुत्तसे, और तीन गुण गधेसे सीख लेना योग्य है। सिंहका एक गुण प्राह्य है। प्रभूतकार्यपल्पं वा । यो नरः कर्तुमिच्छति ॥ सर्वारम्भेण तत्कुर्या । सिंहस्यैकं पदं यथा ॥ बड़ा या छोटा जो कार्य करना हो वह कार्य सर्व प्रकारके उद्यमसे एकदम कर लेना, परन्तु उसके
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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