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________________ २६४ श्राद्धविधि प्रकरण दुष्कर है। सुबहसे ही ले कर कोई एक विनीत पुत्र अपने माता पिता को शतपाक और सहस्रपाक तेलसे मर्दन करके सुगन्धित द्रव्यों द्वारा उनके शरीरका विलेपन कर गन्धोंदक, उष्णोदक और शीतोदक ऐसे तीन प्रकारके जलसे स्नान करा कर, सर्वालंकार से सुशोभित कर, उनके मनोच माहार प्राप्त करके अष्टादशअठारह प्रकारके शाकपाक जिमावे तथा इस तरह खान पान करा कर जब तक वे जीबें तब तक उन्हें पीठ पर बिठा कर फिरावे, जहाँ उनकी इच्छा हो वहाँ ले जाय, उनके जीवन पर्यंत इस प्रकारकी सेवा करने पर भी उनके किये हुये उपकार का बदला कदापि नहीं दे सकता। परन्तु यदि वह माता पिताको अर्हत प्रणीत धर्मकी प्राप्ति करा दे, हेतु दृष्टान्तसे उस तत्वको उन्हें बराबर समझा दे, भेदभेदान्तर की कल्पना से समझा दे. कदाचित धर्ममें शिथिल हो गये हों तो उन्हें पुनः स्थिर कर दे तो हे आयुष्यमान शिष्यो! वह पुत्र अपने माता पिताके किये हुए उपकार का बदला दे सकता है। इसी प्रकार उपकारी के उपकारों का बदला उतारने का प्रयत्न करना चाहिये। . कोई एक बड़ा दरिद्री किसी बड़े धनवन्त के पास आ कर आश्रय मांगे और उसके दिये हुए आश्रयसे वह दरिद्री उस शेठके समान ही श्रीमन्त हो कर विवरे तब फिर देवयोग वह सहायकारी धनाढ्य स्वयं दरिद्री हो जाय तो वह अपने आश्रयसे धन पाने वालेके पास आवे तब यह हमारा शेठ है, इसकी ही कृपासे मैंने यह लक्ष्मी प्राप्त की है अतः यह सब लक्ष्मी इसीकी है इस विचारसे उसके पास जितनी लक्ष्मी हो सो सब उसे अर्पण कर दे तथापि उस शेठके प्रथम दिये हुए आश्रयका बदला देनेके लिये असमर्थ है। परन्तु केवलीसर्वक्ष प्रणीत धर्मकी प्राप्ति करा दे तो उसके उपकार का बदला दे सकता है। अन्यथा किसी प्रकार पूर्ण प्रत्युपकार नहीं किया जा सकता। "गुरुके उपकारों का बदला" किसी एक उत्कृष्ट संयमो, श्रमण, माहण - महा ब्रह्मचारी, ऐसे गुणधारक साधुके पाससे एक भी प्रशंसनीय धर्मसम्बन्धी उपदेश वचन सुन कर चित्तमें निर्णय कर कोई प्राणी आयुष्य पूर्ण करके मृत्यु पा किसी एक देवलोक में देवतया उत्पन्न हुआ। फिर वह देवता अपने उपकारी धर्मगुरु के किये हुए उपकारों का बदला देनेके लिए यदि वे साधु अकालके प्रदेशमें पहुंचा दे, अथवा किसी अटवीके विकट संकट में पड़े हों तो वहाँका उपद्रव दूर करे या जो विरकाल पर्यंत न मिट सके ऐसा कोई भयंकर रोग उन्हें लागू पड़ा हो तो उसे दूर कर दे, तथापि उनके किये हुए उपकार का बदला नहीं दे सकता। परन्तु यदि कदा. चित् वे धर्मसे पतित हो गये हों और उन्हें फिरसे धर्ममें दृढ़ कर दे, तो ही उनके किये हुये उपकारका बदला दे सकता है। इस बातपर अपने पिताको धर्मप्राप्ति करा देने पर आर्यरक्षित सूरिका तथा केवलज्ञान हुए बाद भी अपने माता पिताको बोध होने तक निर्दूषण आहार वृत्तिसे अपने घरमें रहने वाले कुर्मापुत्र का दृष्टान्त समझना। ... सर्व प्रकारके सुख भोग देने वाले शेठके किये हुए उपकार का बदला देने पर किसी मिथ्यात्वी शेठके
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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