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________________ श्राद्धविधि प्रकरण २६३ अधिक दोष लगता हो उस प्रकारका क्रयाणा-माल बेचना या खरीदना, या उसका ब्यापार करना, खर. कर्म-पंद्रह कर्मादान, पापमय अधिकार, (पुलिस आदि) में प्रवृत्ति करना इत्यादि सब कुछ धर्मके विरुद्ध आचरण गिना जाता है। इस लिए इसका परित्याग करना चाहिए। मिथ्यात्वादिक के अधिकारके विपयमें विशेषतः हम हमारी की हुई वंदितासूत्र की अर्थदीपिका में कह गये हैं। जिसे इस विषयमें अधिक जानना हो उसे वहांसे देखकर अपनी जिज्ञासा पूरी कर लेना उचित है। देशविरुद्ध, कालविरुद्ध, राजविरुद्ध, लोकविरुद्ध, इन चार प्रकारके विरुद्धोंसे भी धर्मविरुद्ध अधिक दुःखप्रद है। इस लिए धर्मात्मा प्राणीको धर्मविरुद्ध सेवन करनेसे लोकमें अपकीर्ति, परलोक में दुर्गति, आदि अनेक अवगुणों की प्राप्ति होती है। यह समझ कर इसका परित्याग करना चाहिए। "उचित आचारका सेवन" 'उचिताचरण'–उचितका याने उचित आचारका आचरण याने सेवन करना, वह पिताका उचित, माताका उचित, इत्यादि नव प्रकारका बतलाया है। उस उचितावरण के सेवनसे स्नेह वृद्धि, कीर्ति, बहुमान वगैरह कितने एक गुणोंकी प्राप्ति होती है। उनमेंसे कितने एक गुण बतलाने के विषयमें उपदेश मालाकी गाथा द्वारा उसका अधिकार बतलाते हैं- इस लोकमें जो कुछ सामान्य पुरुषोंकी यशकीर्ति सुनी जाती है वह सचमुच एक उचित । आचरण सेवन करनेका ही माहात्म्य है।" "उचिताचरण के नव भेद" १ पिताका उचित, २ माताका उचित, ३ सगे भाईका उचित, ४ स्त्रीका उचित, ५ पुत्रका उचित, ६ सगे सम्बन्धियों का उचित, ७ गुरुजनों का उचित, ८ नगरके लोगोंका अथवा जाति वाले लोगोंका उचित, ६ परतीर्थी का उचित । इस तरह नव प्रकारका उचिताचरण करना चाहिये। पिताका उचित कायासे, ववनसे और मनसे एवं तीन प्रकार का है। कायिक उचित-पिताके शरोरकी सेवा शुश्रूषा करना, वचनसे उचित-पिताका वचन पालन करना याने विनय पूर्वक-नम्रतासे उन की आज्ञा सुन कर प्रसन्नता पूर्वक तदनुसार आचरण करना, मनसे उचित-सर्व कार्यों में पिताकी मनोवृत्ति के अनुसार आचरण करना, उनकी मानसिक वृत्तिके विरुद्ध वृत्ति या प्रवृत्ति न करना। मा बापके उपकारों का बदला देना बड़ा कठिन है। माता पिताके उपकार का बदला इस लोकमें उन्हें धर्मकी प्राप्ति करा देनेसे ही दिया जा सकता है। इसके बगैर उनका बदला देनेका कोई उपाय नहीं। इसलिए ठाणांग सूत्र में कहा है कि-'तीन जनोंके उपकार का बदला देना दुष्कर है। १ माता पिताका, २ भरण पोषण करने वाले शेठका, और ३ धर्माचार्य का-जिसके द्वारा उसे धर्मकी प्राप्ति हुई हो उस धर्मगुरु का। इन तीनोंके उपकार का बदला देना बड़ा
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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