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________________ श्राद्धविधि प्रकरण २४१ साथ हिस्लेमें व्यापार करनेकी याचना की, परन्तु उसके निर्धन होनेके कारण उसने उसकी बात पर कान ही न दिया। उस निर्धन व्यपारीने अन्य मनुष्योंसे भी शिफारस कराई परन्तु उसने जरा भी न सुना, तब उस व्यापारी ने मनमें विचार किया कि कुछ युक्ति दिये बिना दाव न लगेगा। इस विचार से उस शेठके एक पुराने मुनीमसे मिलकर शेठके पुत्रसे गुप्त रह कर अपने पुराने खातेको निकलवा कर दो चार मनु. ष्योंको साक्षी रूप रख कर अपने खातेमें अपने हाथसे दो हजार रुपये उधार लिख कर बही खाता जैसाका तैसा रख दिया। कितने एक दिन बाद उस बहीको पढ़ते हुए वह खाता मालूम होनेसे मुनीमने नये शेठको बतलाया। नया शेठ बोला कि, यदि ऐसा है तो वसूल क्यों नहीं करते ? शेठने मुनीमजी को रुपये मांगनेके लिए भेजा तब उसने स्वयं शेठके पास आकर कहा कि, यह तो मेरे ध्यानमें ही है। आपके मुझपर दो हजार रुपये निकलते हैं परन्तु करू क्या ? इस वक्त तो मेरे पास देनेके लिए कुछ नहीं और ब्यापार भी धन बिना कहांसे करू ? इसलिए यदि आप उन रुपयोंको लेना चाहते हों तो ब्यापार करनेके लिए मुझे दूसरे रुपये दो जिससे कमाकर मैं आपका देना पूरा करू और मैं भी कमा खाऊं । यदि ऐसा न हो तो मुझसे कुछ न बन सकेगा। नये शेठने विचार किया सचमुच ही ऐसा किये बिना इससे दो हजार रुपये वापिस न मिलेंगे। इससे उसने दो हजार रुपये लेनेकी आशासे अपने साथ पहले समान ही उसे हिस्सेदार बना कर किसी ब्या. पारके लिए भेजा; इससे वह गरीब थोड़े ही दिनोंमें पुनः धनवंत बन गया, हिसाव करते समय वे दो हजार रुपये काटलेने के वक्त उसने वीचमें रक्खे हुए साक्षियोंको बुलाकर शेठके पास गवाही दिलाई और अपने हाथ से लिखा हुवा बिना लिये उधार खाता रद्दी कराया वह इस प्रकार भाग्यशाली की सहायसे धनवन्त हुवा । अधिक लक्ष्मी प्राप्त होने पर गर्वन करना चाहिये। निर्दयता, अहंकार, तृष्णा, कर्कश बचन-कठोर भाषण नीच लोगोंके साथ व्यापार, (नट, बिट, लंपट, असत्यवादी के साथ सहवास रखना); ये पांच लक्ष्मीके सहचारी हैं अर्थात् ज्यों २ लक्ष्मी बढ़ती है त्यों २ उसके पास यह पांचों जरूर आने ही चाहिए, यह कहावत मात्र तुच्छ प्रकृति वालोंके लिए ही है। इस लिये लक्ष्मी प्राप्त करके भी कभी भी गर्व अभिमान न करना। क्यों कि, जो संपन्न होनेपर भी नम्रतासे वर्तता है वही उत्तम पुरुषों में गिना जाता है। जिसके लिए कहा है,-आपदा आनेपर दोनता न करे, संपदा प्राप्त होनेपर गर्व न करे, दूसरोंका दुःख देखकर स्वयं अपने पर पड़े हुये कष्ट जैसे ही दुःखित हो, अपने पर कष्ट आने पर प्रसन्न हो ऐसे वित्तवाले महान् पुरुषको नमस्कार हो । समर्थ होकर कष्ट सहन करे, धनवान होकर गर्व न करे, विद्वान् होकर नम्र रहे, ऐसे पुरुषोंसे पृथ्वी शोभा पाती है। जिसे बड़ाई रखनेकी इच्छा हो उसे किसीके साथ क्लेश न रखना चाहिये। उसमें भी जो अपनेसे बड़ा गिना जाता हो उसके साथ तो कदापि तकरार न करना। कहा है कि, खांसीके रोग वालोंको चोरी, निन्दा बालेको चाम चोरी (परस्त्री गमन ), रोगीष्टको खानेकी लालच और धनवानको दूसरोंके साथ लड़ाई, न करनी चाहिये। यदि वैसा करे तो अनर्थकी प्राप्ति होती है। धनवान, राजा, अधिक पक्षवाला, अधिक क्रोधी, गुरु, नीच, तपस्वी, इतनोंके साथ कदापि वादविवाद- तकरार नहीं करना ।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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