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________________ श्राद्धविधि प्रकरणे इससे तू क्यों उदास होता है ? जब वसन्त ऋतु आयेगी तब थोड़े ही समयमें तेरी पूर्वसे भी बढकर शोभा बन जायगी। अतः तू खेद मत कर! इस अन्योक्ति से हरएक विपदा ग्रस्त मनुष्य बोध ले सकता है। . "गया धन पुनः प्राप्त होने पर आभड़ शेठका दृष्टान्त" पाटण नगरमें श्री माली वंशज नागराज नामक एक कोटिध्वज श्रीमंत शेठ रहता था। उसे प्रिय. मेला नामकी स्त्री थी। जब वह गर्भवती हुई तो तत्काल अजीर्ण रोगसे शेठ मरणकी शरण हुवा। अपु. त्रक की मृत्युवाद उसका धन राजा ग्रहण करे उस समयमें ऐसा एक नियम होनेसे उसका सर्वस्व धन राजाने लूट लिया, जिससे निर्धन बनी हुई शेठानी खिन्न होकर धोलका में अपने पिताके घर जा रही। वहां पर उसे अमारीपटह पलानेका दोहला. उत्पन्न हुये बाद पुत्र पैदा हुवा। उसका अभय नाम रखा गया। परन्तु वह किसी कारणसे लोकमें आभड़ नामसे प्रसिद्ध हुवा। जब वह पांच वर्षका हुवा तब पाठशाला में जाते हुए किसीके मुखसे यह सुन कर कि, वह बिना बापका है अपनी माताके पास आकर उसने हठपूर्वक पूछा तब उसकी माताने सत्य घटना कह सुनाई । फिर कितने एक आडम्बर से वह पाटण रहनेको गया। वहां अपने पुराने घरमें रहते हुए और व्यापार करते हुए प्रतिष्ठा जमानेसे लाछल देवीके साथ उसका लन हुवा। स्त्री भाग्यशाली होनेसे उसके आये बाद आभड़के पिताका दबाया हुवा घर में बहुतसा धन निकला. इससे वह अपने पिताके समान पुनः कोटिध्वज हो गया। फिर उसे तीन लडके हुए परन्तु नशीब कमजोर आनेसे सब धन सफाया होगया और निर्धन बन बैठा। अन्तमें ऐसी अवदशा आ लगी कि, लड़कों सहित उसे बहुको उसके पीहर भेजनी पड़ी। अन्य कुछ व्यापार लाभदायक न मिलनेसे वह स्वयं मनियारी-जौहरीकी दुकान पर बैठा। वहां पर सारा दिन तीन मणके घिसे तव एक पायली जब मिलें, उन्हें लाकर स्वयं अपने हाथसे पीसे और पकावे तब खावे। ऐसा विपत्तिमें आ पड़ा। इस विषयमें शास्त्रकार ने कहा है समुद्र और कृष्ण ये दोनों जिस प्रेमसे अपनी गोदमें रखते थे उसके घरमें भी जब लक्ष्मी न रही तब जो लोग खर्च करके लक्ष्मीका नाश करते हैं उनके घरमें लक्ष्मी कैसे रहे?.. . ... एक समय श्री हेमचन्द्राचार्य के पास श्रावकके बारह व्रत अंगीकार करते हुए इच्छा परिणाम धारण करते वक्त आभड बहुत ही संक्षेप करने लगा, तब आचार्यने बहुत दफा समझाया तथापि नव लाख रुपये खुले रखकर अधिक न रखनेका उसने प्रत्याख्यान कर लिया और अन्तमें यह नियम लिया कि, इससे अधिक जितना द्रव्य प्राप्त हो सो सब धर्म मार्गमें खर्च डालूंगा। फिर कितने एक दिन बाद उसके पास पांच रुपये हुये। एक दिन वह गांव बाहिर गया था, वहां पर जलाशयमें बकरियों का टोला पानी पीता था। उस पानी को लीले रंगका हुवा देख आभाड षिचारने लगा कि निर्मल जल होने पर भी यह पानी हरे रंगका क्यों मालूम होता है। अधिक विचार करनेसे मालूम हुवा कि, एक बकरीके गलेमें एक लीला पत्थरका टूकड़ा बंधा हुवा है, यह देखकर उसने गड़रीये से पूछा यह वकरी तुझे बेचनी है ? उसके मंजूर करनेसे पांच रुपये में खरीद कर आभड उस बकरीको अपने घर ले भाया और उस पत्थरके टुकड़े करके उसे एक. सरीखा घिसः
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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