SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ श्राद्धविधि प्रकरणे अपने पूछे हुए चार प्रश्नोंके यथार्थ उत्तर सुन कर मुंशीला ने सरस्वती की दी हुई प्रतिज्ञा पूरी होनेसे प्रसन्न होकर जाबडके गलेमें वरमाला आरोपण की। फिर दोनोंके मातापिताने बड़े प्रसन्न होकर और आडम्बर से उनका विवाह समारम्भ किया। लान हुये बाद अब वे नव म स देह छायाके समान दोनों जने परस्पर प्रेमपूर्वक आसक्त हो देवलोकके समान मनोवांछित यथेच्छ सांसारिक सुख भोगने लगे। जाबडके पुण्य बलसे राज्य के शत्रु भी उसकी आज्ञा मानने लगे और उसमें इतना अधिक आश्चर्यकारक देखाव मालूम होने लगा जहां २ पर जावडका पद संचार होता वहांकी जमीन मानो अत्यन्त प्रसन्न ही न हुई हो! ऐसे वह नये नये प्रकारके अधिक स्वादिष्ट और रसाल रसोंको पैदा करने लगी। एक समय जाबड़ घोड़े पर सवार हो फिरनेके लिए निकला हुवा था उस वक्त किसी पर्वत परसे गुरुने बतलाये हुये लक्षणवाली 'चित्रावेल' उसके हाथ आई । उसे लाकर अपने भंडारमें रखनेसे उसके भंडारकी लक्ष्मी अधिकतर वृद्धिंगत हुई। कितनेक साल बीतने पर जब भावड राजा स्वर्गबास हुये तब जावड गजा बना । रामके समान राज्यनीति चलानेसे उसका राज्य सचमुच ही एक धर्मराज्य गिना जाने लगा। फिर दुषमकालके प्रभावसे कितनाक समय व्यतीत हुए बाद जैसे समुद्रकी लहरें पृथिवीको वेष्ठित करें वैसे मुगल लोगोंने आकर पृथिवीको वेष्ठित कर लिया, जिससे सोरठ कच्छ लाट आदिक देशोंमें म्लेच्छ लोगोंके राज्य होगये । परन्तु उन बहुतसे देशोंको संभालनेके कार्यके लिये कितने एक अधिकारियों की योजना की गई । उस समय सब अधिकारियों से अधिक कलाकौशल और सब देशोंकी भाषामें निपुण होनेसे सव अधिकारियों का आधिपत्य जाबडको मिला । इससे उसने सबके अधिकार पर आधिपत्य भोगते हुए सब अधिकारियोंसे अधिक धन उपार्जन किया । जैसे आर्य देशमें उत्तम लोग एकत्र बसते हैं वैसे ही जावडने अपनी जातिवाले लोगोंको मधुमतिमें बसा कर वहां श्री महावीर स्वामीका मन्दिर बनवाया। एक समय आर्य अनार्य देशमें विचरते हुए वहां पर कितने एक मुनि आ पधारे। जावड उन्हें अभिवन्दन करने और धर्मोपदेश सुनने आया। धर्मदेशना देते हुए गुरु महाराजने श्री शत्रुजयका वर्णन करते हुये कहा कि पंचम आरेमें तीर्थका उद्धार जावडशाह करेगा यह बचन सुन कर प्रसन्न हो नमस्कार कर जावड पूछने लगा, तीर्थंका उद्धार करनेवाला कौनसा जावड समझना चाहिये । गुरुने ज्ञानके उपयोगसे विचार कर कहा-"तीर्थोद्धारक जावडशाह तू ही है" परन्तु इस समय कालके महिमासे शत्रुजय तीर्थके भधिष्ठायक देव हिंसक मद्य मांसके भक्षक होगये हैं। उन दुष्ट देवोंने शत्रुजयतीर्थके आस पास पचास योजन प्रमाण क्षेत्र उध्वंस (ऊजड ) कर डाला है। यदि यात्राके लिये कोई उसकी हदके अन्दर आवे तो उसे कपर्दिक यक्ष मिथ्यात्वी होनेसे मार डालता है। इससे श्री युगादि देव अपूज्य होगये हैं। इसलिए हे भाग्यशाली ! तीर्थोद्धार करनेका यह बहुत अच्छा प्रसंग आया हुवा है। प्रथमसे श्री महावीर स्वामीने यह कहा हुआ है कि जाबडशाह तीर्थका उद्धार करेगा अतः यह कार्य तेरेसे ही निर्विघ्नतया सिद्ध हो सकेगा। अब तू श्री चक्केश्वरी देवीका आराधन करके उसके पाससे श्री बाहूबलीने भरवाये हुए श्री ऋषभदेव स्वामीके विम्बको मांग ले जिससे तेरा यह कार्य सिद्ध हो सकेगा। यह सुनकर हर्षावेशसे रोमांचित हो जावडने गुरु महाराजको नमस्कार कर अपने घर
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy