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________________ श्राद्धविधि प्रकरण बतलानेकी तीर्थंकर की आज्ञा नहीं है तथापि तुम्हारे पुत्रसे जैन शासनकी वड़ी उन्नति होनेवाली है; इसी कारण तुम्हारे पास इतना निमित्त प्रकाशित किया है। यों कहकर मुनि चल पड़े तब भाविलाने अति प्रसन्नता से उन्हें अभिवन्दन किया। अब भाविला शेठानी अपने पतिकी दूकान पर जा बैठी। इतनेहीमें वहां पर कोई एक घोड़ी बेचनेवाला आया, उसे देख भाविलाने अपने पतिके पास मुनिराजकी कही हुई सर्व हकीकत कह सुनाई, इससे भावड़ शेठने कुछ धन नगद दे कर और कुछ उधार रख कर घोड़ीवाले को ज्यों त्यों समझाकर उससे घोड़ी खरोद ली। उस साक्षात् कामधेनु के समान घोड़ीको लाकर अपने घर बांधी और उसको अच्छी तरह सार संभाल करने लगा। कितने एक दिनों बाद उस घोड़ीने सर्वांग लक्षण युक्त सूर्यदेवके घोड़े के समान एक किशोर-बछेरेको जन्म दिया। उसकी भी बड़ी हिफाजतसे सार सम्भाल करते हुए जब वह तीन सालका हुवा तब उसे बड़ा तेजस्वी देखकर तपन नामक राजा शेठको तीन लाख द्रव्य देकर खरीद ले गया। भावड़शेठ उन तीन लाख में से अन्य भी कितनी एक घोड़ियां खरीद उन्हें पालने लगा जिससे एक सरीखे रंग और रूप आकार वाले इक्कीस किशोर पैदा हुए। भावड़ शेठने वे सब उज्जैनी नगरमें जाकर विक्रमार्क नामक बड़े राजाको भेट किये। उन्हें देख राजा बड़ा ही प्रसन्न हुवा और कहने लगा कि इन अमूल्य घोड़ोंका मूल्य मैं तुझे कुछ यथार्थ नहीं दे सकता, तथापि तु जो मुहसे मांगेगा सो तुझे देने के लिए तैयार हूं, इसलिए जो तेरे ध्यानमें आवे सो मांग ले। उसने मधुमती (महुवा) का राज्य मांगा, इससे विक्रमार्कने प्रसन्न होकर अन्य भी बारह गांव सहित उसे मधुमतीका राज्य दिया। _____ अब भावड़ विक्रमार्क से मिली हुई अधिक ऋद्धि, छत्र, चामर, ध्वजा, पताका, निशान, डंका, सहित बड़े आडम्बरसे ध्वजा वगैरहसे सजाई हुई मधुमती नगरीमें आकर अपनी आज्ञा प्रवर्त्ता कर राज्य करने लगा। भावड़ आडम्बर सहित जिस दिन उस नगरमें आया उसी दिन उसकी स्त्री भाविलाने पूर्व दिशा में से उदय पाते हुए सूर्य के समान तेजस्वी एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। उस बालकका जन्म हुवा तब दशों दिशायें भी प्रसन्न दिखाववाली दीखने लगी, पवन भी सुखकारी चलने लगा, सारे देशमें हरेक प्रकारसे सुख शान्ति फैल गई और चराचर प्राणी भी सब प्रसन्न हो गये। - अब भावड़ने बड़े आडम्बरसे उस पुत्रका जन्ममहोत्सव किया और उसका 'जावई' नाम रख्खा। बड़ी हिफाजत के साथ लालन-पालन होते हुए नन्दन वनमें कल्पवृक्षके अंकूरके समान माता पिताके मनो. रथोंके साथ जावड़ वृद्धिको प्राप्त हुवा। भावड़ने एक समय किसी ज्योतिषी को पूछकर अच्छी रसाल और श्रेष्ठ उदय करानेवाली जमीन पर अपने नामसे एक नगर बताया। उसके बीचमें इस प्रचलित चौवीसी में आसन्न उपकारी होनेसे पोषधशाला सहित श्रीमहावीर स्वामीका मन्दिर बनवाया। जावड़ जब पांच सालका हुवा तबसे वह विद्याभ्यास करने लगा। वह निर्मल बुद्धि होनेसे थोड़े ही दिनोंमें सर्व शास्त्रोंका पारगामी हुवा और सब समयमें अत्यन्त कुशलता पूर्वक साक्षात् कामदेवके रूप समान रूपवान और तेजस्वी आकारवान होता हुवा यौवनावस्था के सन्मुख आया। भावड़ राजाने अनेक कन्यायें मिलने पर भी जावड़ के योग्य कन्या तलाश करनेके लिए अपने सालेको भेजा। वह कम्पिलपुर तरफ चल पड़ा, मार्गमें शत्रुजय
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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