SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरण हो तो राजसभा में, व्यापारी प्रमुख हो तो बाजार या हाट दूकान पर, अथवा अपने २ योग्य स्थान पर जाकर धर्ममें बाधा न आये याने धर्म में किसी प्रकारका विरोध न पड़े ऐसी रीतिसे न्योपार्जन का विचार करे। राजाओंको यह दरिद्री है या धनवान है, यह मान्य है या अमान्य है, तथा उत्तम, मध्यम, अधम, जातिकुल स्वभावका विवार करके सबके साथ एक सरीखा उचित न्याय करना चाहिये। "न्याय-अन्याय पर दृष्टान्त" कल्याण कटकपुर नगरमें यशेवर्मा राजा राज्य करता था। वह न्यायमैं एक निष्ठ होनेसे उसने अपने न्याय मन्दिरके आगे एक न्याय-घण्टा बन्धा रख्खा था। एक दफा उसकी राज्याधिष्ठायिका देवीको ऐसा विचार उत्पन्न हुवा कि, उस राजाने जो न्याय घण्टा बाँधा है सो सत्य है या असत्य इसकी परीक्षा करनी चाहिए। यह विचार कर वह देवी स्वयं गायका रूप धारण कर तत्काल उत्पन्न हुए बछड़े के साथ मोहकीड़ा करती हुई राजमार्ग के बीच आ खड़ी हुई। इस अवसर में उसी राजाका पुत्र अत्यन्त जोशमें दौड़ते हुए घोड़ों वाली गाड़ीमें बैठकर अतिशय शीघ्रतासे उसी मार्गमें आया। अति वेगसे आती हुई घोड़ा गाड़ीके गड़गड़ाहट से मार्ग में खड़े हुए और आने जानेवाले लोग तो सब एक तरफ बच गये, परन्तु गाय यहाँसे न हटी, इससे उसके बछड़ के पैर पर घोड़ा गाडीका पहियाँ आजानेसे वह बछड़ा तत्काल मृत्यु शरण हो गया। अब गाय पुकार करने लगी और जैसे रोती हो वैसे करुणनादसे इधर उधर देखने लगी। उसे रस्ते चलनेवाले पुरुषोंने कहा कि, न्याय दरबार में जाकर अपना न्याय करा। तब वह गाय चलती हुई दरबारके सामने जहां न्याय घन्ट बंधा हुवा है वहां आई और अपने सींगोंके अग्रभाग से उस घन्टेको हिला २ कर बजाने लगी। इस समय राजा भोजन करने बैठता था तथापि वह बन्टा नाद सुनकर बोला-"अरे यह घन्टा कौन बजाता है ?" नौकरोंने तलाश करके कहा-"स्वामिन् ! कोई नहीं आप सुखसे भोजन करें"। "राजा बोला-घंटानाद का निर्णय हुए बिना भोजन कैसे किया जाय ? यों कहकर भोजन करनेका थाल ज्योंका त्यों छोड़ कर स्वयं उठ कर न्याय मन्दिरके आगे आकर देखता है कि यहाँ पर एक गाय उदासीन भावसे खड़ी है ! राजा उसे कहने लगा-क्या तुझे किसीने दुःख पहुंचाया है ? उसने मस्तक हिलाकर हाँ की संज्ञा की, राजा बोला-"चल! मुझे उसे बतला वह कौन है ?" यह बचन सुनकर गाय चल पड़ी; और राजा भी उसके पीछे २ चल पड़ा। जिस जगह बछड़े का कलेवर पड़ा था वहां आकर गायने उसे बतलाया। बछड़े परसे गाड़ीका पहियां फिरा देख राजाने नौकरोंको हुक्म दिया कि, जिसने इस बछड़े पर गाड़ीका पहियाँ फिराया हो उसे पकड़ लावो। इस वृत्तान्तको कितनेएक लोग जानते थे, परन्तु वह राजपुत्र होनेसे उसे राजाके पास कौन ले आवे, यह समझ कर कोई भी न बोला। इससे राजा बोला कि, "जबतक इस बातका निर्णय और न्याय न होगा तब तक मैं भोजन न करूंगा।" तथापि कोई न बोला जब राजाको वहां पर ही खड़े एक दो लंघन होगये तबतक भी कोई न बोला। तब राजपुत्र स्वयं आकर TRको कहने लगा-"स्वामिन् ! मैं ही इस बछड़े पर गाड़ीका पहिया क्लानेवासा क्सलिये मुझे जो
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy