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________________ श्राद्धविधि प्रकरण अपने गांवको ही देवलोक की नगरी समान मानते हैं, अपनी झोपड़ी को विमान समान मानते हैं, अपने कदन्न भोजन को ही अमृत मानते हैं, अपने ग्रामीण वेष को ही स्वर्गीय वेष मानते हैं । वे अपने आप को इंद्र समान और अपने परिवार को ही सर्वसाधारण देव समान मानते हैं। क्योंकि जैसा जिसने देखा हो उसे उतना ही मान होता है। इतना सुनकर राजाने मनही मन विचार किया कि वचन विचक्षण यह तोता सचमुच ही मुझे एक ग्रामीण के समान समझता है और इसकी इस उक्ति से यह वितर्क होता है कि मेरी रानियों से भी अधिक रूप लावण्यमयी स्त्री इसने कहीं देखी मालूम होती है। राजा मन ही मन पूर्वोक्त विचार कर रहा था इतने में ही मानों अधूरी बात को पूरी करनेके लिये वह मनोहर वाचाल तोता पुनः मनोज्ञ वाणी बोलने लगा- जबतक तूने गांगीऋषि की कन्या को नहीं देखी तबतक ही हे राजन् तू इन अपनी रानियों को उत्कृष्ट मानता है। सर्वाङ्ग सुभगा ' और समस्त संसार की शोभारूप तथा विधाता की सृष्टि रचना का एक फलरूप वह कन्या है। जिसने उस कन्या का दर्शन नहीं किया उसका जीवन ही निष्फल है। कदाचित् दर्शन भी किया हो परन्तु उसका आलिंगन किये बिना सचमुच ही जिन्दगी व्यर्थ है । जैसे भ्रमर मालती को देख कर अन्य पुष्पों की सुगंध लेना छोड़ देता है वैसे ही उस कन्याको देखनेवाला पुरुष क्या अन्य स्त्रियोंसे प्रीति कर सकता है ? साक्षात् देवराज की कन्या के समान उस कमलमाला नामकी कन्या को देखने की एवं प्राप्त करने की यदि तेरी इच्छा हो तो हे राजन् तूं मेरे पीछे पीछे चला आ, यों कहकर वह दिव्य शुकराज वहां से एक दिशा में उड़ चला । यह देख जाने बड़ी उत्सुकतापूर्वक अपने नौकरोंको बुलाकर शीघ्र हुक्म किया कि पवनगतिके समान शीघ्रगतिगामी पवन वेग अश्वको तैयार करके जल्दी लाओ, जरा भी बिलंब मत करो। नौकरोंने शीघ्र ही सर्व साज सहित घोड़ा राजाके सामने ला खड़ा कर दिया। पवनवेग घोड़े पर सवार हो राजा तोतेके पीछे पीछे दौड़ने लगा । इस घटना में यह एक आश्चर्य था उस दिव्य शुकराज की सर्व बातें बिना राजाके अन्य किसीने भी न सुन पाई थीं। इससे उत्सुकता पूर्वक शीघ्रता से घोड़े पर सवार हो अमुक दिशा में बिना कारण अकस्मात् राजाको जाता देख नौकरोंको बड़ा आश्चर्य हुआ । राजाके जानेका कारण रानियोंको भी मालूम न था अतः नौकरोंमें से कितने एक घोड़ों पर सवार हो राजागया था उस दिशामें उसके पीछे दौड़े। परन्तु राजाका पवनवेग घोड़ा बड़ी दूर निकल गया था इसलिये राजाकी शोध के लिये उसके पीछे दौड़ने वाले सवारोंको उसका पता तक नहीं लगा, अन्तमें वे सबके सब राजाका पता न लगने पर शामको वापिस लौट आये । "राजा तोते के पीछे पीछे बहुत दूर निकल गया था । तोता और घोड़े पर चढा हुवा राजा पवनके समान गति करते हुये सैंकड़ों योजन उल्लंघन कर चुके थे तथापि किसी दिव्य प्रभावसे राजाको थाक नहीं लगा था। जिस प्रकार कर्मके सम्बन्धसे आकर्षित हुआ प्राणी क्षणभर में भवान्तरको प्राप्त होजाता है वैसेही विघ्न निवारक शुकराज से आकर्षित हुआ राजा भी मानो क्षणभर में एक महाविकट अटवी को प्राप्त होगया । यह भी एक आश्चर्यजनक घटना है कि पूर्वभव के स्नेह सम्बन्धसे या अभ्यास से ही राजा उस कमलमालाकी प्राप्तिके लिये इतना भयंकर जंगली मार्ग उलंघन कर इस अटवी प्रदेशमें दौड़ा आया । यदि पूर्वभवके संस्कारादि न हों तो जहां 2
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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