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________________ श्राद्धविधि प्रकरण १७६ किया था उसके बदले में दसलाख कांकनी जितना द्रव्य समर्पण करके देवद्रव्यके देनेसे सर्वथा मुक्त हुवा; अब अनुक्रम से वह ज्यों २ व्यापार करता त्यों २ अधिकतर द्रव्य उपार्जन करते हुये अत्यन्त धनाढ्य हुवा। तब स्वदेश गया वहांके सब व्यापारियोंसे अत्यन्त धनपात्र एवं सर्व प्रकारके ब्यापारमें अधिक होनेसे उसे राजाने बड़ा सन्मान दिया । वहां उसने गांव और नगरमें अपने द्रव्यसे सर्वत्र नये जैन मन्दिर बनवाये और उनकी सार संभाल करना, देव द्रव्यकी वृद्धि करना, नित्य महोत्सव प्रमुख करना आदि कृत्योंसे अत्यन्त जिनशासन की महिमा करने और कराने में सबसे अग्रेसर बनकर अनेक दीन, हीन, दुखी जनोंके दुःख दूर कर बहुतसे समय पर्यन्त स्वयं उपार्जन की हुई लक्ष्मीका सदुपयोग किया । नाना प्रकारकी सत्करनियां करके अर्हत् पदकी भक्तिमें लीन हो उसने अन्तमें तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया । उसे बहुतसी स्त्रियाँ तथा पुत्र पौत्रादिक हुए, जिससे वह इस लोकमें भी सर्व प्रकारसे सुखी हुवा। उसने बहुतसे व्रत प्रत्याख्यान पालकर, तीर्थयात्रा प्रमुख शुभ कृत्य करके इस लोकमें कृतकृत्य बनकर अन्तमें समय पर दीक्षा अंगीकार की। गीतार्थ साधुओं की सेवा करके खयं भी गीतार्थ होकर और यथायोग्य बहुतसे भव्य जीवोंको धर्मोपदेश देकर बहुतसे मनुष्योंको देवभक्ति में नियोजित किया। देव भक्तिकी अत्यन्त अतिशयतासे वीस स्थानकके बीचके प्रथम स्थानकको अति भक्ति सह सेवन करनेसे तीर्थंकर नाम कर्मको उसने गुढतया निकाचित किया। अब वह वहां से काल करके सर्वार्थसिद्ध विमानमें देवऋद्धि भोग कर महा विदेह क्षेत्रमें तीर्थंकर ऋद्धि भोग कर बहुतसे भव्य जीवों पर उपकार करके शाश्वत सुखको प्राप्त हुवा । जो प्राणी देव-द्रव्य भक्षण करनेमें प्रवृत्ति करता है उसका उपरोक्त हाल होता है । जबतक आलोयण प्रायश्चित्त न लिया जाय तबतक किसी भी प्रकार उसका उद्धार नहीं होता । इसलिए देवद्रव्य के कार्यमें बड़ी सावधानता से प्रवृत्ति करना। प्रमादसे भी देवब्य दृषणका स्पर्श न हो । वैसा यथाविधि उपयोग रखना। "ज्ञानद्रव्य और साधारणद्रव्य पर कर्मसार और पुण्यसारका दृष्टान्त" जोगपुर नगरमें चौवीस करोड सुवर्ण मुद्राओंका मालिक धनावह नामक शेठ रहता था, धनवती नामा उसकी स्त्री थी। उन्हें साथ ही जन्मे हुए कर्मसार और पुण्यसार नामके दो भाग्यशाली लड़के थे। एक समय वहांपर एक ज्योतिषो आया उससे धनावह शेठने पूछा कि, यह मेरे दोनों पुत्र कैसे भाग्यशाली होंगे? ज्योतिषी बोला-"कर्मसार जड़ प्रकृति, अतिशय तेढी बुद्धि वाला होनेसे बहुतसा प्रयास करने पर भी पूर्वका द्रव्य गंवा देगा और नवीन द्रव्य उपार्जन न कर सकनेसे दूसरोंकी नौकरी वगैरह करके दुःखका हिस्सेदार होगा । पुण्यसार भी अपना पूर्वका और नवीन उपार्जन किया हुवा द्रव्य बारंवार खोकर बड़े भाईके समान ही दुःखी होगा। तथापि वह व्यापारादिक में सर्व प्रकारसे कुशल होगा । अन्तमें बृद्धावस्था में दोनों भाई धन संपदा और पुत्र पौत्रादिक से सुखी हो अपनी अन्तिम वयका समय सुधारेंगे। ऐसे कह कर गये बाद धनावह शेठने दोनों लड़कोंको सिखानेके लिए श्रेष्ठ अध्यापकको सोंप दिया। पुण्यसार स्थिरबुद्धि होनेसे थोड़े ही समयमें सुख पूर्वक व्यावहारिक सर्व कलायें सीख गया, और कर्मसार बहुतसा उद्यम करने पर भी चपल बुद्धि होनेसे अक्षर मात्र भी न पढ़ सका, इतना ही नहीं परन्तु उसे अपने घरका नांवा ठावा लिखने जितनी भी
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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