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________________ १७० श्राद्धविधि प्रकरण १६ आहार पानीका निमंत्रण पहले दूसरे साधुओंको फिर गुरुको करे तो आशातना लगती । १७ गुरुको पूछे बिना अपनी मर्जीसे स्निग्ध, मधुर आहार दूसरे साधुको दे तो आशातना लगती है। १८ गुरुको दिये बाद स्निग्धादिक आहार बिना पूछे भोजन करले तो आशातना लगती है। १६ गुरुका कथन सुना न सुना करके जबाब न दे तो आशातना समझना। २० यदि गुरुके सामने कठिन या उच्च खरसे बोले, जबाव दे तो आशातना समझना। २१ गुरुके बुलाने पर भी अपने स्थानपर बैठा हुआ ही उत्तर दे तो वह आशातना होती है। २२ गुरुके किसी कार्यके लिए बुलाने पर भी दूरसे ही उत्तर दे कि क्या कहते हो? तो आशातना लगती है। २३ गुरुने कुछ कहा हो तो उसी बचनसे जबाव दे कि आप ही करलेना ! तो आशातना समझना । २४ गुरुका व्याख्यान सुन कर मनमें राजी न होकर उलटा दुःख मनाये तो आशोतना होती है। २५ गुरु कुछ कहते हों उस वक्त बीच में ही बोलने लग जाय कि नहीं ऐसा नहीं है मैं कहता हूँ वैसा है, ऐसा कहकर गुरुसे अधिक --विस्तारसे बोलने लग जाय तो आशातना होती है । २६ गुरु कथा कहता हो उसे भंग कर बीचमें स्वयं बात करने लग जाय तो आशातना होती है । २७ गुरुकी मर्यादा तोड़ डाले, जैसे कि अब गोचरीका समय हुवा है या पडिलेहन का वक्त हुवा है ऐसा कहकर सबको उठा दे तो गुरुका अपमान किया कहा जाय, इससे भी आशातना होती है। २८ गुरुके कथा किये बाद अपनी अकलमन्दी बतलाने के लिए उस कथाको विस्तारसे कहने लग जाय तो गुरुका अपमान किया गिना जानेसे आशातना लगती है। २६ गुरुके आसनको पग लगानेसे आशातना होती है। ३० गुरुकी शय्या, संथाराको पग लगानेसे आशातना होती है। ३१ यदि गुरुके आसन पर स्वयं बैठ जाय तो भी आशातना गिनी जाती है। ३२ गुरुसे ऊंचे आसन पर बैठे तो आशातना होती है। ३३ गुरुके समान आशन पर बैठे तो भी आशातना होती है। आवश्यक चूर्णीमें तो 'गुरु कहता हो उसे सुनकर बीचमें स्वयं बोले कि हां ! ऐसा है तो भी आशातना होती है। यह एक आशातना बढ़ी, परन्तु इसके बदलेमें उसमें उच्चासन और समासन (बत्तीस और तेतीसवीं) इन दो आशातना को एक गिनाकर तेतीस रक्खीं हैं। गुरुकी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन प्रकारकी आशातना हैं। १ गुरुको पैर वगैरहसे संघटन करना सो जघन्य आशातना ।२ श्लेष्म खंकार और थूककी छोटे उड़ाना यह मध्यम भाशातना और ३ गुरुका आदेश न मानना अथवा विपरीत मान्य करना उनके बचनको असुनना, यदि सुने तो सन्मुख उत्तर देना या अपमान पूर्वक बोलना, यह उत्कृष्ट आशातना समझना।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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