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________________ १६६ श्राद्धविधि प्रकरण पट्टी पर लिखे हुए अक्षरोंको थूक लगाकर मिटाना, शान अथवा ज्ञानके उपकरण पर बैठना, सोना, शान या शानके उपकरण अपने पास होते हुए बड़ी नीति करना टट्टी जाना, शानकी या ज्ञानीकी निन्दा करना, उसका सामना करना, ज्ञानका, ज्ञानीका नाश करना, सूत्रसे बिपरीत भाषण करना; यह सब ज्ञानकी उत्कृष्ट आशातमा गिनी जाती है। "देवकी आशातना" देवकी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट एवं तीन प्रकारकी आशातना हैं। जघन्य आसातना -वासक्षेपकी, रासकी, और केशरकी डब्बी, तथा रकेबी कलश प्रमुख भगवान के साथ अथड़ाना या पछाड़ना । अथवा नासिका, मुखको स्पर्श किये हुये वस्त्र प्रभुको लगाना। यह देवकीजघन्य आशातना समझना। मुख कोष बांधे बिना या उत्तम निर्मल धोती पहने बिना प्रभुको पूजा करना, प्रभुको प्रतिमा जमीन पर डालना, अशुद्ध पूजन द्रव्य प्रभु पर चढ़ाना, पूजाको विधिका अनुकम उल्लंघन करना। यह मध्यम आशा. तना समझना। "उत्कृष्ट आशातना" प्रभुकी प्रतिमाको पैर लगाना, श्लेष्म, खकार, थूक वगैरह के छींटे उड़ाना, नासिका के श्लेष्मसे मलीन हुये हाथ प्रभुको लगाना, अपने हाथसे प्रतिमाको तोड़ना, चुराना, चोरी कराना, बचनसे प्रतिमाके अवर्णबाद बोलना, इत्यादि उत्कृष्ट आशातना जानना । दूसरे प्रकारसे मन्दिरकी जघन्यसे १०, मध्यमसे ४०, और उत्कृष्टसे ८४, आसातना वर्जना सो बतलाते हैं। १ मन्दिर में तंबोल पान सुपारी खाना, २ पानी पीना, ३ भोजन करना, ४ जूता पहन कर जाना, ५ स्त्री भोग करना, ६ शयन करना, ७ थूकना, ८ पिशाब करना, ६ बडी नीति करना, १० जुआ वगैरह खेल करना, इस प्रकार मन्दिरके अन्दरकी दस जघन्य आसातना वर्जना। १ मन्दिरमें पिशाव करना, २ बड़ीनीति करना, ३ जूता पहरना, ४ पानी पीना, ५ भोजन करना, ६ शयन करना, ७ स्त्रोसंभोग करना, ८ पान सुपौरो खाना, थूकना, १० जुवा खेलना, ११ ज खटमल वगैरह देखना, या चुनना, १२ विकथा करना, १३ पल्होटो लगाकर बैठना, १४ पैर पसार कर बैठना, १५ परस्पर विवाद करना, ( बड़ाई करना) १६ किसीकी हंसी करना, १७ किसीपर ईर्षा करमा, १८ सिंहासन, पाट, चौकी वगैरह ऊंचे आसन पर बैठना, १६ केश शरीरकी विभूषा काना, २० छत्र धारण करना, २१ तलवार पास रखना, (किसी भी प्रकारका शस्त्र रखना) २२ मुकुट रखना, २३ चामर धारण करना, २४ धरना डालना, (किसीके पास लेना हो उसे मन्दिर में पकड़ना, ) २५ स्त्रियोंके साथ कामविकार तथा हास्य विनोद करना, २६ किसी भी प्रकारकी क्रीड़ा करमा, २७ मुखकोष वांधे बिना पूजा करना, २८ मलिन वन या मलिन शरीरसे पूजा करना, २६ भगवान की पूजा करते समय भी चंबल चित्त रखना, ३० मन्दिरमें प्रवेश करते समय सवित्त वस्तुका त्याग न करना, ३१ अचित्त वस्तु शोभाकारी हो उसे दूर रखना, ३२ एक अखंड बला
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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