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________________ . श्राद्धविधि प्रकरण मित्रकी बुद्धिके समान बुद्धिवाला एक चित्रमतिनामक शेठ उस राजाका मित्र था और उस शेठके वहां एक सुमित्र नामका वाणोतर था। सुमित्र वाणोतरने किसी एक धन्नानामक कुलपुत्रको अपना पुत्र मान कर अपने घरमें नौकर रक्खा है । वह एक दिन बड़े २ कमलोंसे परिपूर्ण ऐसे एक सरोवरमें स्नान करने. को गया। उस सरोवरमें क्रीड़ा करते हुये कमलोंके समूहमें से एक अत्यंत परिमलवाला और सहस्र पंखड़ियोंवाला कमल मिल गया। वह कमल अपने साथमें लेकर सरोवरसे अपने घर आरहा है, इतनेमें ही मार्ग में पुष्प लेकर आती हुई और उसकी पूर्वपरिचित बार मालीकी कन्यायें उसे सामने मिलीं । वे कन्यायें उसे कहने लगीं कि, हे भद्र ! जैसे भद्रसाल वृक्षका पुष्प अत्यन्तदुर्लभ है वैसे ही यह कमल भी अत्यन्त दुर्लभ है, इसलिए ऐसे कमलको जहां तहां न डाल देना । इस कमलकी किसी उत्तम स्थान पर योजना करना, या किसी राजा महा. राजाको समर्पण करना कि जिससे तुझे महालाभ हो। धन्नाने उत्तरमें कहा कि, यदि ऐसा है तो उत्तम पुरुष के कार्यमें या किसी राजाके मस्तक पर जैसे मुकुट शोभता है वैसे ही वैसेके मस्तक पर मैं इस कमलकी योजना करूंगा। यों कह आगे चलता हुवा विचार करने लगा कि, मेरे पूजनेयोग्य तो मेरा सुमित्र नामक शेठ ही है, क्योंकि जिसकी तरफसे जीवन पर्यंत आजीविका चलती है उससे अधिक मेरे लिये और कौन हो सकता है ? ऐसा विचार कर उस भद्रप्रकृतिवाले धन्नाने अपने शेठ सुमित्रके पास आकर, विनययुत नमन कर, उसे वह कमल समर्पण कर, उसकी अमूल्यता कह सुनाई। सुमित्र भी विचार करने लगा कि, ऐसा अमूल्य कमल मेरे क्या कामका है ? मेरा वसुमित्र शेठ'अत्यन्त सजन है और उसने मुझपर इतना उपकार किया है कि, यदि मैं उसकी आजीवन बिना वेतन नौकरी करू तथापि उसके किये हुये उपकारका बदला देने के लिये समर्थ नहीं हो सकता; इसलिये अनायास आये हुये इस अमूल्य कमलको ही उन्हें भेट करके कृतकृत्य बनू । यह विचार कर सुमित्रने अपने शेठ वसुमित्रके पास जाकर अत्यन्त बहूमानसे कमल समर्पण कर, उसकी तारीफ कह सुनाई । उस कमलको लेकर वसुमित्र शेठ भी विचार करने लगा कि, ऐसे दुर्लभ कमलको सेवन करनेकी मुझे क्या जरूरत है ? मेरा अत्यन्त हितवत्सल चित्रमति प्रधान हो है क्योंकि उसीकी कृपासे मैं इस नगरमें बड़ा कहलाता हूं इसलिये यदि ऐसे अमूल्य कमलको मैं उन्हें भेट करू तो उनका मुझपर और भी अधिक स्नेह बढेगा। पूर्वोक्त विचार कर वसुमित्र शेठने भी वह कमल चित्रमति दीवानको भेट किया और उसके गुणकी प्रशंसा की। उस कमलको पाकर दीवानने भी विचार किया कि, ऐसा अमूल्य कमल उपयोग में लेनेसे मुझे क्या फायदा ? इस कमलको मैं सर्वोत्तम उपकारी इस गांवके राजाको भेट करूगा, कि जिससे उनका स्नेहभाव मुझपर वृद्धिको प्राप्त हो । . ___स्रष्टुरिव यस्य दृष्ट । रपि प्रभावोदभूतो भुवि ययाद्राक्॥ सर्वलघुः सवगुरोः। सवगुरुः स्याच सर्वलघोः॥१॥ ब्रह्माके समान राजाकी दृष्टिके प्रभावसे भी जगतमें बड़ा महिमा होता है, जो सबसे लघु होता है, वह सबसे गुरु-बड़ा होता है; और जो सबसे बड़ा हो वह सबसे छोटा हो जाता है, ऐसा उसकी दृष्टिका प्रभाव है तब फिर. मुझे क्यों न उपकार मानना चाहिये ! इस विचारसे उसने वह कमल राज्यन्धर राजाको भेट किया
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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