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________________ AAAAWAwar mammarnamam श्राद्धविधि प्रकरण कोई चित्रकार वहांपर मूर्ति चितरनेके लिये न जाय तो वह यक्ष गांवके बहुतसे आदमियोंको मार डालता था। इससे बहुतसे वित्रकार गांव छोड़ कर भाग गये थे। अब यह उपद्रव गांवके सब लोगोंको सहन करना पड़ेगा यह समझ कर बहुतसे नागरिक लोगोंने राजाके पास जा कर पुकार की और पूर्वोक्त वृत्तान्त कह सुनाया। राजाने सब चित्रकारोंको पकड़ बुलवाया और उनकी एक नामावलि तैयार कराकर उन सबके नामकी विढियें लिखवा कर एक घड़े में डाल रक्खीं और ऐसा ठहराव किया कि, निकालने पर जिसके नामकी चिट्ठी निकले उस साल वही चित्रकार यक्षकी मूर्ति चितरने जाय। ऐसा करते हुए बहुतसे वर्ष बीतगये। एक बृद्ध स्त्रीको एक ही पुत्र था, एक साल उसीके नामकी चिट्ठी निकलनेसे उसे वहां जानेका नम्बर आया, इससे वह स्त्री अत्यन्त रुदन करने लगी। यह देख एक चित्रकार जो कि उसके पतिके पास ही चित्रकारी सीखा था, वृद्धाके पास आकर विचार करने लगा कि, ये सब चित्रकार लोग अविधिसे ही यक्षकी मूर्ति वित्रते हैं इसी कारण उनपर कोपायमान हो यक्ष उनके प्राण लेता है; यदि मूर्ति अच्छी चितरी जाय तो कोपायमान होनेके बदले यक्ष उलटा प्रसन्न होना चाहिये। इसलिये इस साल में ही वहां जाकर विधि पूर्वक यक्षकी मूर्ति चिजूं तो अपने इस गुरु भाईको भी बचा सकूगा, और यदि मेरी कल्पना सत्य होगई तो मैं भी जिन्दा ही रहूंगा। एवं हमेशाके लिए इस गांवके चित्रकारोंका कष्ट दूर होगा। यह विचार कर उस बृद्ध स्त्रीको कहने लगा "हे माता ! यदि तुम्हें तुम्हारे पुत्रके लिए इतना दुःख होता है तो इस साल तुम्हारे पुत्रके बदले मैं ही मूर्ति वितरने जाऊंगा" वृद्धाने उसे मृत्युके मुखमें जाते हुए बहुत समझाया परन्तु उसने एक न सुनी । अन्तमें जब मूर्ति चितरनेका दिन आया उस रोज उसने प्रथमसे छठकी तपश्चर्या की और स्नान करके अपने शरीरको शुद्ध कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर, धूप, दीप, नैवेद्य, बलिदान, रंग, रोगन, पीछी, ये सब कुछ शुद्ध सामान लेकर यक्षराजके मन्दिर पर जा पहुंचा। वहांपर उसने अष्ट पटका मुखकोष बाँधकर प्रथम शुद्ध जलसे मन्दिरकी जमीनको धुलवाया। पवित्र मिट्टी मंगाकर उसमें गायका गोबर मिलाकर जमीनको लिपवाया, बाद उत्तम धूपसे धूपित कर मन, बचन, काय, स्थिर करके शुभ परिणामसे यक्षको नमस्कार कर सन्मुख बैठकर उसने यक्षकी मूर्ति वित्रित की। मूर्ति तैयार होनेपर उसके सन्मुख फल, फूल, नैवेद्य, रखकर धूप दीप आदिसे उसकी पूजा कर नमस्कार करता हुवा हाथ जोड़कर बोला-'हे यक्षराज ! यदि आपकी यह मूर्ति बनाते हुये मेरी कहीं भूल हुई हो तो क्षमा करना । उस वक्त यक्षने साश्चर्य प्रसन्न हो उसे कहा कि, मांग ! मांग! मैं तुझपर तुष्टमान हूं। उस वक्त वह हाथ जोड़कर बोला-“हे यक्षराज! यदि आप मुझपर तुष्टमान हैं तो आजसे लेकर अब किसी भी चित्रकारको न मारना।" यक्षने मंजूर हो कहा-“यह तो तूने परोपकारके लिये याचना की परन्तु तू अपने लिए भी कुछ मांग। तथापि चित्रकारने फिरसे कुछ न मांगा। तब यक्षने प्रसन्न होकर कहा" जिसका तू एक भी अंश-अंग देखेगा उसका सम्पूर्ण अंग चितर सकेगा। तुझे मैं ऐसी कलाकी शक्ति अर्पण करता हूं। चित्रकार यक्षको प्रणाम करके और खुश हो अपने स्थानपर चला गया । वह एक दिन कौशाम्बिके राजाकी सभामें गया था उस वक्त राजाकी रानीका एक अंगूठा उसने जालीमेंसे देख लिया था, इससे उसने उस मृगावती रानीका
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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