SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरण १३. पूजायें समाजाती हैं। जैसे कि "पुप्फारोहण” फूल चढ़ाना, 'गंधा रोहणं' सुगन्ध बास चढाना, इत्यादिक सत्रह भेद समझना तथा स्नानपूजा आदिक इक्कीस प्रकारकी पूजा भी होती है। अंगपूजा अग्रपूजा, भावपूजा, ऐसे पूजाके तीन भेद गिननेसे इसमें भी पूजाके सब भेद समा जाते हैं। "पूजाके सत्रह भेद" १ स्नात्रपूजा-विलेपनपूजा, २ चक्षुयुगलपूजा (दो चक्षु चढाना ), ३ पुष्पपूजा, ४ पुष्पमालपूजा, ५ पंचरंगी छूटे फूल चढानेकी पूजा, ६ चूर्णपूजा (बरासका चूर्ण चढ़ाना ), ध्वजपूजा, ७ आभरणपूजा, ८ पुष्पगृहपूजा, ६ पुष्पप्रगरपूजा (फूलोंका पुंज चढ़ाना, १० आरती उतारना, मंगल दीवा करना, अष्ट मंगलोक स्थापन करना, ११ दीपकपूजा, १२ धूपपूजा, १३ नैवेद्यपूजा, १४ फलपूजा, १५ गीतपूजा, १६ नाटक पूजा, १७ वाद्यपूजा। "इक्कीस प्रकारकी पूजाका विधि" . उमाखाति वाचकने पूजाप्रकरणमें इक्कीस प्रकार पूजाकी विधि नीचे मूजब लिखी है। "पूर्व दिशा सन्मुख स्नान करना, पश्चिम दिशा सन्मुख दंतवन करना, उत्तर दिशा सन्मुख श्वेत वस्त्र धारण करना, पूर्व या उत्तर दिशा खड़ा रहकर भगवानकी पूजा करना। घरमें प्रवेश करते बायें हाथ शल्यरहित अपने घरके तलविभागसे देढ हाथ ऊंची जमीन पर घरमंदिर करना । यदि अपने घरसे नीची जमीन पर घरमंदिर या बड़ा मंदिर करे तो दिनपर दिन उसके वंशकी और पुत्र पौत्रादि संततिकी परंपरा भी सदैव नीची पद्धतिको प्राप्त होती है। पूजा करनेवाला पुरुष पूर्व या उत्तर दिशा सन्मुख खड़ा रहकर पूजा करे; दक्षिण दिशा और विदिशा तो सर्वथा ही वर्ज देना चाहिये। यदि पश्चिम दिशा सन्मुख खड़ा रहकर भगवत मूर्तिकी पूजा करे तो चौथी संततिसे (चौथी पीढ़ीसे) वंशका विच्छेद होता है और यदि दक्षिण दिशा सन्मुख खड़ा रहकर पूजा करे तो उसे संतति ही न हो। आग्नेय कोनमें खड़ा रहकर पूजा करे तो दिनों दिन धनकी हानि हो, वायव्य कोनमें खड़ा रहकर पूजा करे तो उसे पुत्र ही न हो, नैऋत्य कोनमें खड़ा होकर पूजा करनेसे कुलका क्षय होता है और यदि ईशान कोनमें खड़ा होकर पूजा करे तो वह एक स्थानपर सुखपूर्वक नहीं रहता। दो अंगूठोंपर, दो जानू, दो हाथ, दो खवे, एक मस्तक, ऐसे नव अंगोंमें पूजा करनी। चंदन विना किसी वक्त भी पूजा न करना। कपालमें, कंठमें, हृदयकमलमें, पेटपर, इन चार स्थानोंमें तिलक करना। नव स्थानोंमें (१ दो अंगुठे, २ दो जानू , ३ दो हाथ, ४ दो खवे, ५ एक मस्तक, ६ एक कपाल, ७ कंठ, ८ हृदयकमल, ६ उदर ) तिलक करके प्रतिदिन पूजा करना । विचक्षण पुरुषोंको सुबह वासपूजा, मध्याह्नकाल पुष्पपूजा और संध्याकाल धूप दीप पूजा करनी चाहिये । भगवानके बायें तरफ धूप करना और पासमें रखनेकी वस्तुयें सन्मुख रखना तथा दाहिनी तरफ दीवा रखना और चैत्यवंदन या ध्यान भी भगवंतसे दाहिनी तरफ बैठकर ही करना।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy