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________________ १२७ AAAAAAAAone Arrow श्राद्धविधि प्रकरण अन्न सारे जगत्का जीवन होनेसे सबसे उत्कृष्ट रत्न गिना जाता है । इसी कारण वनवाससे आकर श्रीराम चन्द्रजीने अपने महाजनोंको अन्नका कुशलत्व इच्छा था। तथा कलहकी निवृत्ति और प्रीतिकी परस्पर वृद्धि भी रंधेहुए अन्नके भोजनसे होती है, रंधेहुए अनके नैवेद्यसे प्रायः देवता भी प्रसन्न होते हैं। सुना जाता है कि, आगिया वैताल देवता प्रतिदिन सौ मुडे अन्नके प्रक्वान्न देनेसे राजा श्रीवीरविक्रमके वश हो गया था। भूत, प्रेतादिक भी रंधेहुए क्षीर, खिचड़ी, बड़े, पकौडे, प्रमुखके भोजन करनेके लिये ही उता. रेकी याचना करते हैं। ऐसे ही दिग्पालादिक को वलिदान दिया जाता है। तीर्थकर की देशना हो रहे बाद भी प्रामाधिपति सूके धान्यकी वलि करके उछालता है, कि जो वलिके दाने सर्व श्रोताजन ऊपरसे पड़ते हुए अधर ही ग्रहण कर अपने पास रखते हैं, इससे उन्हें शांतिक पौष्टिक होती है। "नैवेद्यपूजाके फलपर दृष्टान्त" ____एक साधुके उपदेशसे एक निर्धन किसानने ऐसा नियम लिया था कि, इस खेतके नजदीकवाले मन्दिरमें प्रतिदिन नैवेद्य चढ़ाये बाद हो भोजन करूंगा। उसका कितना एक समय प्रतिज्ञा पूर्वक बीते बाद एकदिन नैवेद्य चढ़ानेको देरी हो जानेसे और भोजनका समय हो जामेसे उसे उतावलसे नैवेद्य चढ़ानेके. लिए आते हुए मार्गमें सामने एक सिंह मिला। उसकी अवगणना कर वह आगे चला; परन्तु पीछे न फिरा । ऐसे ही उस मन्दिरके अधिष्ठायकने उसकी चार दफा परीक्षा की परन्तु वह किसान अपने दूढ़ नियमसे चलायमान न हुवा, यह देख वह अधिष्ठायक उस पर तुष्टमान होकर कहने लगा . "जा! तुझे आजसे सातवें दिन राज्यको प्राप्ति होगी।" सातवें दिन उस गांवके राजाकी कन्याका स्वयम्वर मण्डप था इससे वह किसान भी वहां गया था। उससे दैविक प्रभावसे स्वयम्वरा राजकन्याने उसीके गलेमें माला डाली ! इस बनावसे बहुतसे राजा क्रोधित हो उसके साथ युद्ध करने लगे। अन्तमें उसने दिव्यप्रभावसे सबको जीतकर उस गांवके अपुत्रिक राजाका राज्य प्राप्त किया। लोगोंमें भी कहा जाता हैं कि,: - धूपो दहति पापानि, दीपो मृत्योर्विनाशकः॥ नैवेद्योविपुलं राज्य, सिद्धिदात्री प्रदक्षिणा ॥२॥ धूपपूजासे पाप चला जाता है, दीप पूजासे अमर हो जाता है, नैवेद्यसे राज्य मिलता है, और प्रद. क्षिणासे सिद्धि प्राप्त होती है। ____ अन्नादि सर्व बस्तुकी उत्पत्तिके कारण रूप और पक्वान्नादि भोजनसे भी अधिक अतिशयवान् पानी भो भगवान्के सन्मुख यदि बन सके तो अवश्य प्रतिदिन एक बरतनमें भरकर चढाना । "नैवेद्य चढ़ानेमें शास्त्रों के प्रमाण" आवश्यक नियुक्तिमें कहा है कि, "कीरइबलो" बली (नैवेद्य) करें। नोषीथमें भी कहा है कि, "तमो पभायइए देवीए सो बली माइकाडं भाणायं देवाहिदेवो वद्धमाण सापो तस्स पडिमा कोरउत्ति वाहिमो कुहाडोदुहाजायं पिच्छइ सव्वालंकार विभूसिन भयवो पडिमं”
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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