SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राद्धविधि प्रकरणा ६४ प्रमाण मुहूर्त मात्र ( दो घड़ी) का है। एवं उसका आगार भी थोडा ही है, इसलिए नवकारसी प्रत्याख्यान की तो श्रावकको आवश्यकता ही है। दो घडी काल पूर्ण हुये बाद भी यदि नवकार गिने बिना ही भोजन करे तो उसके प्रत्याख्यानका भंग होता है, क्योंकि, “उग्गएसूरे नमुक्कारसहिअं” पाठमें इसप्रकार नत्रकार गिननेका अंगीकार किया हुआ है। प्रमाद त्याग करनेवाले को क्षण मात्र भी प्रत्याख्यान बिना नहीं रहना चाहिये। नवकारसी आदिकाल प्रत्याख्यान पूरा 'उसी समय ग्रन्थीसहितादि प्रत्याख्यान कर लेना उचित है । ग्रन्थीसहित प्रत्याख्यान बहुत दफा औषधि सेवन करनेवाले तथा बाल बृद्ध बिमार आदिसे भो सुखपूर्वक बन सकता है । निरंतर अप्रमाद कालका निमित्त होनेसे यह महा लाभकारक है। जैसे कि, मांसादिक में नित्य आसक्त रहने वाले बणकरने ( जुलाहेने ) मात्र एक दफा ग्रन्थी सहित प्रत्याख्यान किया था इससे वह कपर्दिक नामा यक्ष हुआ। कहा है कि, "जो मनुष्य नित्य अप्रमादि रहकर ग्रंथीसहित प्रत्याख्यान पारनेके लिये ग्रन्थी बांधता है उस प्राणीने स्वर्ग और मोक्षका सुख अपनी ग्रन्थी (गांठमें) बांध लिया है। जो मनुष्य अचूक नवकार गिन कर गंठसहित प्रत्याख्यान पालता है ( पारता है) उन्हें धन्य है, क्योंकि, वे गंठसहित प्रत्याख्यानको पारते हुये अपने कर्मकी गांठको भी छोड़ते हैं। यदि मुक्ति नगरमें जानेके उद्यमको चाहता है तो ग्रंथसहित प्रत्याख्यान कर ! क्योंकि, जैन सिद्धांत के जाननेवाले पुरुष ग्रंथीसहित प्रत्याख्यानका अनशनके समान पुण्य प्राप्ति बतलाते हैं" रात्रिके समय में चार प्रकारके आहारका त्याग करनेवाला एक आसनपर बैठकर भोजनके साथ ही तांबूल या मुखवास ग्रहण कर विधि पूर्वक मुखशुद्धि किये बाद जो ग्रंथीसहित प्रत्याख्यान पारनेके लिये गांठ बांधता है, उसमें प्रतिदिन एक दफा भोजन करनेवालेको प्रतिमास २६ दिन और दो दफा भोजन करनेवाले को अट्ठाईस चोविहारका फल मिलता है ऐसा वृद्धवाक्य है । (भोजनके साथ तांबूल, पानी वगैरह लेते हुये हररोज सचमुच दो घड़ी समय लगता है, इससे एक दफा भोजन करनेवालेको प्रत्येक महिने २६ उपवासका फल मिलता है, और दो दफा भोजन करने वालेको प्रतिदिन चार घड़ी समय जीमते हुये लगनेसे हरएक मासमें अट्ठाईस उपवासका लाभ होता है, ऐसा वृद्ध पुरुष बतलाते हैं) इस विषय में रामचरित्र में कहा है कि, जो प्राणी स्वभावसे निरंतर दो ही दफा भोजन करता है उसे प्रतिमास अड्ट्टाईस उपवासका फल मिलता है। जो प्राणी हररोज एक मुहूर्त मात्र चार प्रकारके आहारका त्याग करता है उसे दर महिने एक उपवासका फल स्वर्ग arrar मिलता है। इस तरह प्रति दिन एक, दो, या तीन मुहूर्त की सिद्धि करनेसे एक उपवास, दो उपवास, या तीन उपवासका फल बतलाया है" । इस तरह जो यथा शक्ति तप करता है उसे वैसा फल बतलाया है। इस युक्ति पूर्वक ग्रन्थीसहित प्रत्याख्यानका फल ऊपर लिखे मुजब समझना । जो जो प्रत्याख्यान किया हो सो बारंबार याद करना, एवं जो २ प्रत्याख्यान हो उसका समय पूरा होनेसे मेरा अमुक प्रत्याख्यान पूरा हुआ ऐसा विचार करना । तथा भोजनके समय भी याद करना । यदि भोजनके समय प्रत्याख्यान याद न किया जाय तो कदापि प्रत्याख्यानका भंग होजाता है।
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy