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________________ १०० १२१ रागद्वेषसे किये विभागपर विचार आत्मा और दूसरी क्तुओंके सम्बन्ध विचार माता पिता आदिका कैसा सम्बन्ध है ? समताको समझानेवालकी संख्या । सगेसम्बन्धियों का स्नेह स्वार्थी है, अतः स्वस्वार्थसाधनमें लीन रहना समताका चोथा साधन है पौद्गलिक पदार्थोकी अस्थिरता-स्वप्रदर्शन मरणपर विचार-ममत्वका वास्तविक स्वरूप विषयपर मोह-उसका सच्चा दिग्दर्शन-समताप्राप्तिका उपदेश कषायका सच्चा स्वरूप-उसके त्यागनेका उपदेश शोकका सच्चा स्वरूप-उसके त्याग करनेका उपदेश मोहत्याग-समतामें प्रवेश समताद्वारका उपसंहार-रागद्वेषके त्यागका उपदेश द्वितीयः स्त्रीममत्व-मोचनाधिकारः पुरुषकी गर्दन में बंधी हुई शिला स्त्रियोंमें होनेवाली भरमणीयता अपवित्र पदार्थों की दुर्गध । स्त्री शरीरका सम्बन्ध स्त्रीमोहसे इसभव परभवमें होनेवाले फलों का दर्शन स्त्रीशरीरमें क्या है उसके विचारनेकी आवश्यकता भविष्यकी पीडाओं का विचार करके मोहको कम करना स्त्रीशरीर, स्वभाव और भोगफलका स्वरूप ललना ममत्वमोचनद्वारका उपसंहार और स्त्रीकी हीन उपमेयता तृतीयोऽपत्यममत्वमोचनाधिकारः पुत्रपुत्री बन्धनरूप होनेका दर्शन पुत्रपुत्रीके शल्यरूम होनेका दर्शन आक्षेपद्वारा पुत्रममत्वत्यागका उपदेश अपत्यपर स्नेहबद्ध न होनेके तीन कारण चतुर्थो धनममत्वमोचनाधिकारः पैसा पापका हेतुभूत है। धन ऐहिक और आमुष्मिक दुःख पैदा करनेवाला है १२३ १२३ १२५ १२७ १२९ १३१ १३३ १३५ ११९ १४० १४१ १४५ १४७
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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