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________________ इससे सब खुलासा हो सकता है; उस समयकीसमाज (Society)का बन्धारण, व्यवहारपद्धति. विचारपद्धति और विकस्वरता किस प्रकारके थे इसके जाननेका साधन प्राप्त होजाता है जिसके आदरीरूप वह हकीकत वर्तमानकालके जनसमूहके लिये अत्यन्त लाभ. दायक सिद्ध हो सकती है। ऐसे ऐतिहासिक लेखोंके अभावसे बहुधा ग्रन्थके अथे करते समय भी अनेकों अनुविधाओंका सामना करना पड़ता है। और बहुधा अनुमानके अधुरे आधार पर ही कार्य करना पड़ता है । ऐतिहासिक लेख स्वयं कितना लाभ पहुँचाते हैं यह अत्यन्त अगत्य और विचारने योग्य विषय है, परन्तु यहां यह प्रस्तुत नहीं है। अभीतक तो इतना ही उल्लेख करना प्रस्तुत होगा कि भारतवर्षमें इतिहासका अत्यन्त अभाव प्रतीत होता है। हिन्दुस्तानके सम्बन्धमें यथोचित ऐतिहासिक लेखोंका जितना अभाव दृष्टिगोचर होता है, उतना ही जैनीयोंके सम्बन्धमें भी समझले, परन्तु इनकी स्थिति कुछ ठीक है। साधन हिन्दुस्तानका थोड़ा बहुत समय समय पर जो इतिहास उपलब्ध होता है वह बहुधा जैन ग्रन्थोंके आधारपर ही लिखा हुआ है । हेमचन्द्राचार्य तथा उनके पश्चात् होनेवाले कई जैन विद्वानोंने इतिहासके रूपमें जो कुछ थोड़ा बहुत लिख दिया है और उनमेंसे जो कुछ न्यूनाधिक समय समय पर उपलब्ध हो जाता है उसीका उपयोग किया जाता है । यह उत्तम स्थिति है जिससे हमको कुछ आनन्द मिलता है। तिसपर भी इतना तो कहना ही पड़ेगा कि जैनग्रन्थोंमें भी नियमपूर्वक शृङ्खलाबद्ध इतिहासका अभाव है, परन्तु तितर-वितर और बनानेवालोंके नोटके रूपमें वह बहुधा लभ्य है । इतिहासके सम्बन्धमें इतना उपकार जैन प्रजाने अपने ऊपर और दूसरोंके ऊपर किया हो इतना ही नहीं, परन्तु अपनी जातिके महान् आचार्योके सम्बन्धमें भी अनेक ग्रन्थोंकी प्रशस्तियों द्वारा प्रकाश डाला है। हेमचन्द्राचार्यसे पूर्वके आचार्योंके लिये तो चतुर्विशति प्रबन्ध आदि ग्रन्थोंमें इतिहास मिलते हैं और उनके पश्चात् के आचार्योंके लिये तो आधारभूत पट्टावलियें प्राप्य हैं । यह इतिहास भो प्रायः वार्षिक इतिहासके सरव्य ही होता है । अमुक आचार्यके विषयमें कुछ भी मालूम न हो उससे. तो थोड़ा बहुत हाल मालूम होना ही अच्छा
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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