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________________ पद्धति इतनी प्रभावकारक और उत्तम है कि जिसका योजना जिस तरहसे होसके उसीतरह प्रचार करनेकी आव श्यकता है। अध्यात्मकेविषयपर यदि लोगोंका आदर होगा तो इसके पश्चात एक दो अपूर्व ग्रन्थोंपर भी इसीप्रकार विवेचन करनेके सम्बन्धमें योजना करनेकी अभिलाषा है । अब इस ग्रन्थ के रच नार युगप्रधान तुल्य तपगच्छाधिपति श्रीमन्मुनिसुन्दरसूरि महाराजके चरित्रपर गवेषणा कर ऐतिहासिक नोंधोंका संग्रह कर उपोद्घातकी समाप्ति की जायगी। __मुनिसुन्दरसरि और उनका समय इतिहासके सम्बन्धमें हिन्दुस्तानमें पहिले हीसे बेपरवाही बतलाई है ऐसी साधारण पुकार है । अपना नाम प्रसिद्ध करजानेकी - प्रबल अभिलाषा न होनेके कारण या इस विषयसे इतिहास सम्बन्धी 'भविष्यकी प्रजाको विशेष लाभ होनेके कारणको दुर्लक्ष्य विचार न करनेके कारण अथवा अन्य किसी प्रकारके कारणसे इस सम्बन्धमें बहुत पुकार मचानेका कारण उपस्थित हुआ है। जिसके कारण आर्यावर्तकी प्राचीन कालमें क्या स्थिति थी इसका पूरा पूरा हाल जानने में अनेक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है । सच्ची हकीकत इस विषयमें भाग्यसे ही उपलब्ध हो सकती है। जो मिलती हैं वे ग्रन्थपर गिरती हुइ इधर-उधरकी परछाइरूप अथवा प्रकाशकी किरणे हैं कि जिसीके उपरसे अनुमान करना पड़ता है। अमुक ग्रन्थ किस समय लिखा गया है ऐसा यदि किसीको मालुम होजाता हो तो १ मेरे एक विद्वान् मित्रने कहा कि यह बात भ्रमपूर्ण है । उनका कहना है कि मुनिपुंगवों का साध्यबिन्दु ही भिन्न होता है, इससे अपनी महिमा बढ़ानेके लिये अथवा मान-प्रतिष्ठाके लिये बहुधा अपना हाल नहीं लिखते हैं, परन्तु भविष्यकी प्रजाके उपकारकी बात उनके ध्यानके बाहर होजाना अवास्तविक है । यदि बराबर सोध-खोज की जाय तो सम्बत् १००० से अब तकके धर्मराज्य और राजाओं का इतिहास बराबर लभ्य है। नष्ट होनेवाले ऐतिहासिक ग्रन्थों, प्रतिमाजीके उपरके लेखों, मन्दिरोंके लेख, तथा सिके आदि इस हकीकतकी पूर्ती करते हैं। शोधकदृष्टिकी उत्कण्डासे और प्रबल अभिलाषासे यदि कोई व्यक्ति कार्य करनेवाला होतो लगभग प्रत्येक वर्षका इतिहास उपलब्ध है ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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