SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाणसे पूरता विवेचन होजरनेसे इस स्थानपर तो इस अधिकारमें कौन कौनसे विषय पाते हैं एकमात्र उनका ही दिग्दर्शन कराया गया है । कषाय हमारे जीवनमें एक बड़ा कार्य करनेवाला है अतएव इसके सम्बन्ध में सदैव सचेत रहनेकी आवश्यकता है ऐसा ग्रन्थकर्ता वारम्वार फरमाते हैं। . इसके पश्चात् आठवां शास्त्राभ्यासका अधिकार प्राता है । यह अधिकार अत्यन्त व्यवहारिक आकारमें लिखा गया है। शास्त्रका अभ्यास कर यदि विद्वत्ता प्रगट ८ शास्त्र, गति करनेकी अभिलाषा रहे तो उससे बहुत लाभ नहीं होता है, अभ्यासके अनुसार ही व्यवहार रखनेकी श्रावश्यकता है । पण्डितके नामसे ही खुश न हो जाना चाहिये परन्तु मतिके अनुसार बुद्धि भी होनी चाहिये और उन दोनोंके अनुसार प्रवृत्ति भी होनी चाहिये । विषयप्रतिभास, आत्मपरिणतिमत् और तत्वसंवेदन ज्ञानका स्वरूप जो अष्टकजीमें बतलाया गया है उसके मनन करनेकी आवश्यकता है यह हकीकत विवेचन में मुख्यतया चिताकर्षक है। शास्त्राभ्यासका क्या उद्देश्य है इसे विचारनेकी आवश्यकता है और इस विषयपर ग्रन्थकर्त्ताने अत्यन्त प्रभाविक रीतिसे ध्यान खीचा है । इस विषयमें बहुधा गफलत हो जाती है । बहुधा ज्ञानके देखावमें ही जो सम्पूर्णता मानी जाती है उसके विषय में योग्य विचार बतलाये गये हैं। इस विषयके साथ साथ अभ्यासके सम्बन्धमें समझमें आनेवाले चतुर्गतिके क्लेशका वर्णन किया गया है। नरक और तिर्यंच गतिमें दुःख है यह तो यह जीव समझता है परन्तु मनुष्य और देवगतिमें भा सुख नही हैं परन्तु दुःख हैं इस बातको स्पष्ट करनेकी अत्यन्त आवश्यकता है । जिस क्रियाके करनेसे चउगतिकी सिद्धि हो वह अध्यात्म नहीं है ऐसा श्रीश्रेयांसनाथजीके ग्यारहवें स्तवन में आनन्दघनजी द्वारा कहा गया है और कदाच किसी क्रियासे शुभगतिका बन्ध हो सके तो वह भी इष्ट नहीं है ऐसा अवश्य समझना चाहिये । अध्यात्मकी व्याख्या करते हुए भी हम देख चुके हैं कि जिस अध्यात्मसे चउगतिमेंसे किसी भी शुभ एवं अशुभ गतिका बन्धन हो वह अध्यात्म ही नही कहला सकता । सम्पूर्ण ग्रन्थके मध्यबिन्दुरूप जवमा अधिकार चित्तदमनका
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy