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________________ अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोध संवरोपदेशः . [६२३ है कि जहांतक बाह्य इन्द्रियों पर अंकुश नहीं लगाया जाता है तबलक मनका वशमें होना कठिन है, और जबतक मन पर अंकुश न लगाया जाय तबतक इन्द्रियोंपर अंकुश लगाना भी कठिन है। इसप्रकार मन और इन्द्रिय एक दूसरेपर प्रभाव डालते हैं, अतः उन दोनोंका दमन करनेके लिये असाधारण आत्मवीर्य स्फूरित करनेकी आवश्यकता होती हैं । यह कार्य अशक्य नहीं परन्तु अनुभव होनेवालेको विषम प्रतीत होता है; अन्यथा जब ऐसा करने की टेव पड़ जाती है तब तो इन्द्रिय विषयोंका भोग उच्छिष्ट भोजन सदृश प्रतीत होने लगता है। इसप्रकार योगरुंधनके प्रयासके साथ ही साथ कषायोंको जीतनेकी भी आवश्यकता है । अन्तरंग शत्रुओमें कषाय प्रबल शत्रुओंका कार्य करते हैं इसलिये उनके लिये भी पुरुषार्थको आवश्यकता है। योगरुंधन और कषायविजयके साथ साथ चलने पर ही विरतिगुण स्वाभाविकतया प्राप्त होसकता है । इसप्रकार बन्धहेतु शिथिल होते जाते हैं, कम होते जाते हैं और अन्त में नष्ट हो जाते हैं। इस जन्ममें धन, स्त्री, पुत्र पाना कठिन नहीं हैं। कितने ही पुरुषों को जो कठिन जान पडते हैं यह इनकी झूठी धारणा है। ये वस्तुये अनादिकालसे मिलती रहती है इनकी प्राप्तिके लिये प्रयास करना व्यर्थ है, इतना ही नहीं परन्तु वह संसारभ्रमण करानेवाला है। इनमें फँसा हुआ प्राणी अपने कर्त्तव्यका भान भूल जाता है और मानदशाकी ओर भाकर्षित हो जाता है । इसको एकान्तमें बैठकर आत्मचिन्तवन करनेका भान नहीं होता है । पिछली गाथामें निःसंगभाव प्राप्त करनेके लिये किया हुआ उपदेश बहुत मनन करने योग्य है । विशेष बात तो यह है कि
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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