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________________ अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोध संवरोपदेशः [६२१ संयमसे नि:संगता और निःसंगतासे संवर प्राप्त होता है । किस जीवको कौनसा मार्ग अनुकूल होगा इसके लिये एक सामान्य नियम नहीं कहा जा सकता है, इसका आधार पुरुष, काल, स्थान और संयोगोपर है । अमुक प्राणोको कोनसा मार्ग अनु. कूल होगा वह स्वयं विचार कर समझले । अधिक उत्तम मार्ग यह है कि योगादिकका संवर करना और ममकाका त्सम करना ये दोनों कार्य साथ ही साथ करने चाहिये। दोसेंसे महालाभ है और दोनों ऐसे हैं कि एक साथ ही हो सकते हैं। इसप्रकार मिथ्यात्वादिनिरोध और संवरोपदेश अनि कारको समाप्ति हुई । इस अधिकारमें भी हद की गई है। एक मांवमें परदेशसे मानेवाले मालपर जकात लेनेका ठहसव हुना। वह गांव बन्दर न था परन्तु एक बड़ा शहर था। अनेक प्रकारका व्यापार, अनेक व्यौपारी और अनेक दुकाने होनेसे उनका कहा सम्बन्ध रक्खे, किसप्रकार रक्खे, कितने देखरेख करनेवाले रक्खे, इस विचारसे अधिकारी घबरा गये; फिर एक पुरुषने युक्ति बतलाई कि शहर में प्रवेश करनेके नाकें पकड़ो और वहां चौकी रक्खो। इस युक्तिसे पांच या छ पुरुष रखने सम्पूर्ण प्रामपर अमल हो गया। इसीप्रकार पाप-पुण्यकी अनेक प्रकृतियाँ, बंधके विचित्र स्थान और उनकों रोकनेकी महान कठिनता विचारने पर भी समझमें नहीं आ सकती है। अतः यह नाके बतलाये गये हैं इनको पकड़ कर अधिकार जमानेसे सम्पूर्ण कर्मपुरपर साम्राज्य चल सकेगा। ये नाकारूप चार बंधहेतु बतलाये-मिध्यात्व, अविरति, कषायं और योग । इनकी अंवरंग वाटिकामों को देखा जाय तो
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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