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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा पुरुषार्थ जब तक न हो तबतक यह मार्ग कठिन जान प्रश्ना है, परन्तु एक बार रागद्वेष और संसारका सच्चा स्वरूप जान लेने पश्चात् और भात्मिक तथा पौद्गलिक भावोंके अन्तरको जान बेनेके पश्चात् संसार कडुवा विष के समान प्रतीत होता है । इस. प्रकारके शानगर्भित वैराग्यवासी जीव कभी भी सांसारिक भावोंको नहीं चाहते हैं, यूंके हुएको नहीं चाटते और तत्त्वतः उनपर दुर्गच्छा रखते हैं । जो इस स्वरूपको भलिभांति न समझे हो अथवा समझकर पतीत हुए हो वे कभी कभी विषयादिकके आधीन हो जाते हैं, पैसे रखते हैं, स्त्री सम्बन्ध करते हैं और धर्मके झूठे बहानेसे यांत्रिक व्यवहार जैसे त्याज्य कार्योको भी करते हैं । यह सब संसार है । इसमें वस्तुस्थितिका सचा बान नहीं, ओघ श्रद्धा भी नहीं, और संप्रदाय के प्रचलित रिवाजोंका अनुसरण भी नहीं । इसप्रकारकी चेष्टा क्वचित देख कर मुनिमार्ग पर अप्रीति न करना चाहिये। यह मार्ग बहुत उत्तम है इतमा ही नहीं परन्तु सर्वोत्तम है, समतामय है, मोचमुखको प्रसादी है और सब क्लेशों का नाश करनेवाला है। इस मार्गमें प्रात्मकल्याणकी ओर लक्ष्य रख कर जितना प्रयास किया जाय उतना ही लाभ होता है और मिले लाभका क्षय नहीं होता । अपितु जो इस मार्गको न आदर सकते हो उनको भी ऐसे गुणों के प्राप्त करनेकी इच्छा रखना चाहिये और उसकी ओर शुभ दृष्टि रखना चाहिये । इच्छा रखनेसे और प्रयास करनेसे इच्छित वस्तुकी योग्य समयमें प्राप्ति होती है। ___ जो दुनियाके व्यवहारोंसे पर रहकर दुनियाको उपदेश देते हों उनके सम्बन्धमें अभिप्राय प्रगट करते उच्च प्रकारकी शैली होनी चाहिये । जो धार्मिक विषयों पर बड़े २ भाषण देते हों, दुनियाको नजरमें कामक्रोधादिकसे मुक्त समझ जाते हों, वे भी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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